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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

भुला बैठा तेरी सूरत

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भुला बैठा तेरी सूरत
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बड़ा रोमांचक क्षण था जब ३० बर्षों के लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर उससे सामना हो रहा था .
मेरे पास कोई प्रश्न नहीं था .
बस उसकी खुशहाली जानना थी -उसे देखना था .
सो उसकी कोठी के मेन गेट को देखकर ही उसके वैभव का अंदाज हो गया था .
बची खुची कसर ड्राइंग रूम की साजसज्जा देख पूरी हो गई थी .

हलाकि वो खुद एक प्रोफेशनल अर्चिटेक्ट थी सो थोड़ी बहुत सम्पन्नता तो संभावित थी ही ,
किन्तु उसे इतना संपन्न पाकर में ख़ुशी से ज्यादह शर्मिंदगी महसूस कर रहा था .
मेरा उसका कोई मेल ना तो ३० साल पहले था ना आज.
हंसी आ रही थी अपने एकतरफा प्रेम पर

प्रेम की गागर से प्रेम-सागर तक

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श्रीमद्भागवद्गीता में जो कर्म फल की इच्छा बिना कर्म के लिए कहा गया है
वही प्रेम के बिषय में भी सार्थक है .
प्रेम केवल देने के लिए होता है पाने की इच्छा किये बिना !
जब ऐसा प्रेम दिया जाना संभव हो जाता है
तो
प्रेमसलिला का उद्गम होता है .
फिर प्रेम का सागर भी बनता है
.जब प्रेम सागर का रूप ले लेता है तो प्रेम सागर में

जीवन - यात्रा

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जीवन - यात्रा
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जीवन
.
एक अनिवार्य यात्रा
.
चलना ही नियति सबकी
.
पथ चुनाव
.
सीमित विकल्प
.
प्रगत पथ पर्वतीय

अधूरा मिलन

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अधूरा  मिलन
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रात अनायास तुम
मेरे पहलू में आ गईं
.
मेरे प्रथम स्पर्श से
नववधू सी लजा गईं
.
अधखुली पलकों से
निहारती मेरी ओर
.
कंपकपाते अधरों पर
मेरे चुम्बन को प्रतीक्षित

........नादाँ थे हम.........

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........नादाँ थे हम......... 
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कुछ अजीबोग़रीब सी जिंदगी जी हमने !
  पत्थरों से भी उम्मीद-ए-वफ़ा की हमने !
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वो जिन्हें शऊर नहीं आदाब-ए-महफ़िल का,
दाबत-ए-बज़्म उन नामाकूलों को ही दी हमने !
.

सूखे दरख्तों के फिर पत्ते हरे नहीं होते, 
आरज़ू -ए-गुल बेवजह ही की हमने !
.
वतन परस्ती से नहीं दूर तक नाता जिनका,
कमान-ए-वतन उन्हें खुद ही थी दी हमने !
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फिरकापरस्ती है शौक-ओ-शगल जिनका,
दरख्वास्त-ए-अमन खुद उनसे ही थी की हमने !
.
क़ाबिज किये हर साख पे उल्लू खुद उनने,
निगरानी-ए-चमन जिन्हें कभी थी दी हमने !
.
अब हक-ए-फ़रियाद से भी शर्मिन्दा उनसे,
गफलत में  हुक्मरानी जिन्हें खुद सौंप दी हमने !
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ऐ आतंकवाद...

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ऐ आतंकवाद...
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ऐ मेरे देश में घुस आये आतंकवाद

तुम चले जाओ

मेरा देश छोड़कर

भ्रम है तुम्हारा

कि सफल हो जाओगे

इसे टुकड़ों में तोड़क

मकान और घर

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कूलर ए सी का आनंद लेते हुए

भूल चुके हैं हम

कमरे की खिड़की से आती

वो मीठी बयार

ठीक ही कह रहे हैं दिग्विजय जी !!!

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पूजनीय बाबा रामदेव से राजा दिग्विजय सिंह ने कहा है कि
"वे {बाबा रामदेव } सरकार को जांच करने का चेलेंज ना करें ,वे सरकार को जानते नहीं "
दिग्गी राजा के इस कथन से मैं पूरी तरह सहमत हूँ .
हमारे भारत देश का आज़ादी से लेकर आज तक का इतिहास गवाह है कि
जिस तरह सरकार में सम्मिलित सदस्य {मंत्री ,सांसद आदि } के विरुद्ध होने वाली
बड़ी से बड़ी जांच संस्था उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती उसी तरह निर्दोष होते हुए भी

अभागा शिल्पकार

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अभागा शिल्पकार

मैं

एक शिल्पकार

वर्षों से कर रहा हूँ

सिलाओं पर शिल्पकारी

कहते हैं लोग

केक्टस उग आया है

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केक्टस उग आया है
हम दोनों
हमारा छोटा सा घर
घर के आँगन में बगिया
बगिया में खिलते फूल
हमें प्यार था
फूलों से
फूलों की खुशबू से
फूलों की मुस्कान से

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