SwaSaSan: -: आओ हम दीप जलायें :-: स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... -: आओ -: आओ हम दीप जलायें :- . आई है फिर दीपमालिका आओ हम दीप जलायें ! अधम पर दिव्य के विजय...
स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...
"SwaSaSan" "स्व सा सं" (स्वत्व साकार संकल्प / स्वप्न साकार संकल्प / स्वतंत्रता साकार संघ / स्वप्न साकार संघ) स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हर एक सेनानी ने स्वतंत्र भारत के जिस दिवा स्वप्न के लिये अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया... उसी स्वप्न के साकार का संकल्प है! आइये देखते हैं ...कितने सक्षम हैं हम...??? https://swasasan.blogger.in; https://swasaasan.blogspot.com
बुधवार, 11 नवंबर 2015
-: आओ हम दीप जलायें :-
स्वागत् है आपका SwaSaSan पर...
.
आई है फिर दीपमालिका
आओ हम दीप जलायें !
अधम पर दिव्य के विजयोत्सव पर
सब मिल दीप जलायें !
.
किसी क्षुधित व्याकुल निर्धन के
भोजन का कुछ प्रबंध करें
फिर छप्पन व्यंजन भोग से पहले
आओ हम दीप जलायें !
.
किसी दरिद्र दुखी अधनंगे के
तन ढंकने का यत्न करें
फिर नूतन धवल परिधान पहन
आओ हम दीप जलायें !
.
संतप्त स्वजन परिजन पीड़ा से
परजन को भी ध्यान धरें
फिर कर्णभेदी आतिश के संग
आओ हम दीप जलायें !
.
.....एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द!
गुरुवार, 5 नवंबर 2015
पराये धर्म के अपने और मेरे अपने धर्म के पराये....?
स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...
मेरे अपने तो मेरे दिल में बसा करते हैं
फिर अपनों के अपने दूर कैसे रहते?
मेरे अपनों में परिजन से प्रिय हुए
मेरे - कुल, जाति, धर्म, घर, मोहल्ले, शहर, प्रांत, देश...
और पूरी दुनियां के लोग
मैं विस्तृत हुआ धीरे-धीरे
मैं से 'हम-दोनों' में
फिर 'हम-चार' से 400 में, 4,00,000 में
फिर बढ़ते-बढ़ते
कुछ करोड़ मेरे धर्म के
दुनियां भर में फैले हुए लोगों तक
विस्तृत हुआ मैं
गैरों से अपनों के हक की लड़ाई मेरा मकसद बना
एक बार
मेरे अपनों की सीखों पर
एक गैर से वाद-विवाद हुआ
उसने पूछा कि -
क्या तुम्हारे लोग तुम्हारे अपनों की
सीखों पर ही चलते आये हैं ?
क्या कंस, रावण, हिरणाकुश तुम में से एक ना थे?
क्या रावणों, दुर्योधनों के ज्ञात-अज्ञात कुलवंशज
तुम्हारे बीच नहीं हैं आज ?
या खुद तू जो इतना बलबला रहा है
इनमें से किसी का खून नहीं कैसे कह सकता है?
मैं मौन हो सिर झुकाये सुनता रहा....
मन ही मन गुनता रहा ...
मेरे रावण, कंस, दुर्योधनों से
बहुत ऊपर हैं
महान हैं
वे गैर जिन्हें जाना नहीं अबतक मैंने!!!
अब लगता कल तक
मैं
शायद अखिल ब्रम्हांड में
व्याप्त हो जाउंगा
सबमें स्वयं को
और स्वयं में सबको पाउंगा.....
#सत्यार्चन
पराये धर्म के अपने और मेरे अपने धर्म के पराये....?
मेरे अपने तो मेरे दिल में बसा करते हैं
फिर अपनों के अपने दूर कैसे रहते?
मेरे अपनों में परिजन से प्रिय हुए
मेरे - कुल, जाति, धर्म, घर, मोहल्ले, शहर, प्रांत, देश...
और पूरी दुनियां के लोग
मैं विस्तृत हुआ धीरे-धीरे
मैं से 'हम-दोनों' में
फिर 'हम-चार' से 400 में, 4,00,000 में
फिर बढ़ते-बढ़ते
कुछ करोड़ मेरे धर्म के
दुनियां भर में फैले हुए लोगों तक
विस्तृत हुआ मैं
गैरों से अपनों के हक की लड़ाई मेरा मकसद बना
एक बार
मेरे अपनों की सीखों पर
एक गैर से वाद-विवाद हुआ
उसने पूछा कि -
क्या तुम्हारे लोग तुम्हारे अपनों की
सीखों पर ही चलते आये हैं ?
क्या कंस, रावण, हिरणाकुश तुम में से एक ना थे?
क्या रावणों, दुर्योधनों के ज्ञात-अज्ञात कुलवंशज
तुम्हारे बीच नहीं हैं आज ?
या खुद तू जो इतना बलबला रहा है
इनमें से किसी का खून नहीं कैसे कह सकता है?
मैं मौन हो सिर झुकाये सुनता रहा....
मन ही मन गुनता रहा ...
मेरे रावण, कंस, दुर्योधनों से
बहुत ऊपर हैं
महान हैं
वे गैर जिन्हें जाना नहीं अबतक मैंने!!!
अब लगता कल तक
मैं
शायद अखिल ब्रम्हांड में
व्याप्त हो जाउंगा
सबमें स्वयं को
और स्वयं में सबको पाउंगा.....
#सत्यार्चन
बुधवार, 8 जुलाई 2015
मेरे दोस्त.....
स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...
मेरे दोस्त.....
मेरे दोस्त.....
जी चाहता है
मिल जाओ तुम
यकायक कहीं मेले में
लिपट जाओ आकर मुझसे
फिर सोचता हूँ...
ना हो ऐसा कभी
जीवन भर....
तेरे-मेरे पवित्र रिश्ते की
समझ कहां है दुनियां वालों में भला!
तुझसे मिलना मेरी चाहत तो है पर
तेरी खुशहाली को आँच आये ना कहीं....
ना आये कभी तू फिरसे
यही दुआ है मेरी
रब से दिल से!!!
-चर्चित
मिल जाओ तुम
यकायक कहीं मेले में
लिपट जाओ आकर मुझसे
फिर सोचता हूँ...
ना हो ऐसा कभी
जीवन भर....
तेरे-मेरे पवित्र रिश्ते की
समझ कहां है दुनियां वालों में भला!
तुझसे मिलना मेरी चाहत तो है पर
तेरी खुशहाली को आँच आये ना कहीं....
ना आये कभी तू फिरसे
यही दुआ है मेरी
रब से दिल से!!!
-चर्चित
गुरुवार, 18 जून 2015
तमीज
स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...
तमीज
सीखना तो पड़ता है
चाहे
माँ के दुलार से
या
पिता की दुत्कार से
या
गुरु की फटकार से
या
दोस्तों की गालियों की बौछार से
प्रियतम की मनुहार से
या
बीबी/ बास के तिरस्कार से
या
पुलिस की मार से
या
इन सबके मिले जुले संसार से
मगर
सीखना तो होगा ही
-सत्यार्चन
तमीज
सीखना तो पड़ता है
चाहे
माँ के दुलार से
या
पिता की दुत्कार से
या
गुरु की फटकार से
या
दोस्तों की गालियों की बौछार से
प्रियतम की मनुहार से
या
बीबी/ बास के तिरस्कार से
या
पुलिस की मार से
या
इन सबके मिले जुले संसार से
मगर
सीखना तो होगा ही
-सत्यार्चन
रविवार, 31 मई 2015
मंगलवार, 19 मई 2015
शनिवार, 9 मई 2015
विकास चाहिए या विनाश?
प्रकृति की सर्वोत्तम कृति था इन्सान!
प्रकृति की गोद में पलते हुए धीरे-धीरे विकसित होते-होते
प्रकृति प्रदत्त प्रज्ञान के अभिमान से
प्रकृति से ही प्रतिद्वंदिता करने लगा!!!
प्रकृति का निर्विवाद सर्व-स्वीकार्य तथ्य है कि-
प्रकृति ने एक साथ स्त्री और पुरुष दोनों को रचा
इस विचार के साथ कि दोनों मिलकर ही सार्थक हैं, सम्पूर्ण हैं....
पृथक-पृथक निरर्थक!
एक दूसरे के विरुद्ध होकर केवल विनष्ट...
हर विवेकी "व्यक्ति" को अपने-अपने विवेक से विचारना ही चाहिये कि
हमें विकासोन्मुख होना है या विनासोन्मुख!
. -सत्यार्चन
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