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सोमवार, 9 दिसंबर 2013

चर्चित सुख के साधन

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर...
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(पुनः प्रकाशित)

मेरा ही नहीं, श्रीमद्भागवद्गीता, पाक कुरान ,द ग्रेट बाइबल , गुरु ग्रन्थ साहिब आदि धर्म ग्रंथों सहित

कई अन्य विद्वानों का सन्देश है

जिसे मैंने मेरे जीवन में उतारकर 

जीवन सरल व सुखी बनाने में सफलता पाई है ...

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सारे रिश्तों, नातों, मित्रों आदि के प्रति

कुछ भी करते समय

एक भाव जन्मता है कि मैं इसके हित साधन में सहायक हूँ

फिर अगले ही पल एक आस जगती है कि

इसे लगना चाहिए ,

इसे मानना चाहिए कि  

ऐसा मैं कर रहा / रही हूँ

मेरी आवश्यकता पर

इसे भी ऐसा ही करना चाहिए ....

आदि.... आदि....

यही वे प्रतिफल की इच्छाएं हैं जो 

दुःख / कष्ट का कारण हैं .

हम किसी के भी प्रति

{स्वयं अपने प्रति भी }

कुछ भी करते हुए

यदि यह भाव रखें कि 

मैं ऐसा इसीलिये कर रहा/ रही  हूँ  कि

मुझे ऐसा करने की ईश्वरीय प्रेरणा मिली है

या मेरे विवेक अनुसार इस समय

ऐसा ही किया जाना उचित है

मैं केवल सद्भाव से

अपना कर्त्तव्य कर रहा /रही हूँ

जरुरी नहीं कि इसका

सबसे अच्छा /अच्छा

ही परिणाम आये

हो सकता है

इससे भी अच्छा कुछ हो सकता था

हो सकता है

इसका परिणाम अच्छे के स्थान पर बुरा हो 

 किन्तु

मेरे विवेक अनुसार

मैंने अच्छे के लिए ही ऐसा किया

यदि इससे  बुरा भी हो

तो

मुझे आहत नहीं होना है

अच्छा हो

तो

इस बात के लिए

घमंड ना कर 

 आनंदित होना है

कि

मुझे ऐसा अच्छा कार्य करने का

ईश्वर ने अवसर दिया

जिसके प्रति मैंने किया

उसके लिए तो ऐसा होना ही था

यदि मैं ना करता / करती

तो भी

उसके साथ ऐसा होना 

{अच्छा /बुरा }

पूर्वनिर्धारित था .

बस

यही निष्काम कर्म है

यही है

नेकी कर दरिया में डाल

जब इस तरह का भाव

जागृत होना संभव हो जाता है

तब कुछ नए अनुभव होते हैं

केवल सुख के अनुभव

थोडा और विचार कीजिये 

आप उनके लिए दुखी हो लेते हैं

जिनके लिए आपने बहुत कुछ किया 

लेकिन वो आपके लिए

बहुत कुछ / कुछ भी नहीं कर पाए

.

अब एक और बात सोचिये

उन लोगों के बिषय में सोचिये

जिन्होंने आपके लिए

बहुत कुछ/ कुछ  भी अच्छा किया

शायद तुरंत बहुत कम लोग याद आयें

किन्तु

थोडा जोर डालने पर

थोड़े बहुत लोग याद आ ही जायेंगे

[ये तुरंत याद इसीलिये नहीं  आ पाते 

क्योंकि यह हमारा सामान्य

मानव स्वाभाव है.

हम हमारे प्रति किसी के कुछ किये को

अधिक किया नहीं मानते .

यही उनके साथ भी होता है

जिनके लिए हमने कुछ किया,

जो हमारे लिए महान लगता है 

लेकिन उसकी नजरों में

उतना महत्वपूर्ण नहीं होता ]

जो लोग आपके ही अनुसार आपके लिए

कुछ हित संवर्धन का कारण बने

उनमें से कितनों के लिए

प्रतिफल में आप कुछ कर पाए .

कई ऐसे लोग आपकी लिस्ट में मिल जायेंगे

जिनके लिए अच्छे के प्रतिफल में

आप उतना / कुछ भी

  अच्छा नहीं कर पाए होंगे / होंगी.

यहाँ तक कि कईयों को तो

आप कृतज्ञता तक

प्रकट नहीं कर पाए होंगे /होंगी .

यही तथ्य उस समय भी

ध्यान में रखना  चाहिए जब

हम दूसरी ओर हों .

जिस तरह आप उनके लिए

कुछ खास नहीं कर पाए

जिन्होंने आपके लिए किया

उसी तरह वो भी

आपके लिए नहीं कर पाये होंगे!

जिनके लिए आपने कुछ खास किया !

किन्तु यह "अच्छा " होना निरंतर जारी है .

जरुरी नहीं प्रतिफल में

वह व्यक्ति ही कुछ करे

जिसके लिए आपने कुछ किया. 

"प्रतिफल में कहीं कोई और

आपके लिए शुभ कर रहा होगा"

जैसे

अनचाही बरसात में  जब आप

हाथ में छतरी लेकर चलते हैं

तब बरसात से आपको

पूरी छतरी मिलकर ही बचाती है

जबकि आपके सीधे सम्पर्क में

छतरी की केवल डंडी होती है.

आपका पूरा ध्यान पूरी पकड़ डंडी पर ही होती है

बरसात से बचाने वाले परदे की ओर

आप देख भी नहीं रहे होते हैं!

ऐसे ही जीवन यात्रा है

जिसमें दुःख / दर्द की बारिस हो रही है....

और आपके हाथ में

आपके " संचित " *** सद्कर्मों की छतरी है.

कभी यह बरसात सुहानी लगती है

कभी साधारण

कभी मुसलाधार बारिस के साथ

आँधी भी चल रही होती है

तब हमारे हांथों में पकड़ी हुई

मजबूत से मजबूत छतरी भी

हमें भीगने से बचा नहीं पाती

यह बरसात

कभी कम होती है तो कभी ज्यादह

कभी क्षणिक तो कभी लम्बे समय के लिए ....

.......यही प्रकृति है.



*** संचित कर्मों से मेरा आशय आपके होश सँभालने से लेकर

अभी तक के आपके कार्यों

के अतिरिक्त

आपके पूर्वजन्मों के {यदि पूर्व जन्म में विश्वास हो },

पूर्वजों के (क्योंकि जन्म से स्वावलम्बन् तक

आप पूर्वजों के अर्जित का ही उपभोग कर रहे होते हैं!),

 कुल के / परिजनों (परिजन का अर्थ अलग-अलग शरीरों में

एक ही व्यक्ति के होने सा है/होना चाहिये! ) के कर्मों का निष्कर्ष है .

 अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

-'चर्चित चित्रांश'
 

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