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रविवार, 7 फ़रवरी 2016

ये इश्क ऐसी शै है

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर ....  
--:ये इश्क ऐसी शै है:--

क्या समझेंगे भला वो, इश्क की गहराई
जो एक सूरत के इश्क में, सीरत मिटा लेते हैं!
.

कब-कब कितना आया किये,
  तुम दर तक मेरे
दरवाजों ने चुगली
हर बार मुझसे की ...
हवाओं से ही कभी कोई
ख्वाहिश जता जाते
  दरवाजे मेरे फिर,
कभी बंद ना मिलते....
..

दिल के हाथों मजबूर हो
मेरे दर तक आ ही पहुँचे
 दो घड़ी तो साथ बैठ लो      
लौटकर जाने से पहले.
....
निकल कर ख्वाब से कभी
मिल तो लो हकीकत में ...
फिर अख्तियार में हो तुम्हारे
तो छोड़कर चल देना!!!

....

ये इश्क ऐसी शै है
चुपके से वार करती है
फिर हासिल होता कुछ नहीं
मीत  ना मिल पाये
या मिल जाये तो भी !!!
.

..... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना / आलोचना के चन्द शब्द...

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