फ़ॉलोअर

बुधवार, 26 जनवरी 2011

नहीं है इन्तेहाँ ?

swasasan team always welcomes your feedback. please do.


कानून व्यवस्था की दुर्दशा की इन्तेहाँ यदि मालेगांव की घटना भी नहीं है तो तो जाने कहाँ जाकर होगी. एक एडिशनल कलेक्टर तक को अपनी ड्यूटी     निभाने की कोशिश की सजा उसे जिन्दा जलाकर देने का साहस रखते हैं हमारे देश में फल फूल रहे असामाजिक तत्व फिर आम आदमी की बिसात ही क्या ? मेरी छट पटाहट कुछ ऐसी है जैसे श्री सोनवाने के साथ साथ मुझ पर भी पेट्रोल उड़ेलकर आग लगाई गई हो !

असल में तो यह आम आदमी ही जिम्मेदार है ऐसी घटनाओं का और खुद अपनी दुर्दशा का क्योंकि {उसे सुरक्षित रहते हुए भी} ससम्मान अपनी आवाज उठाने के स्थान पर चूहों की तरह जीने को वरीयता देना ज्यादा अच्छा लगता है . यदि आप अपने आपको उन डरपोक चूहों में सुमार नहीं समझते तो swasasan पर जाएँ और जो कर सकते करें या जो करना चाहते  हैं बताएं .

कोई टिप्पणी नहीं:

Translate