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भारत में न्याय व्यवस्था के विगत उदहारण चीख चीख कर कह रहे हैं
जनसामान्य शोषण को तैयार रहे !
न्याय केवल वशिष्ठ जनों अथवा धनकुबेरों के साथ किया जाएगा !
उनके अनुसार किया जाएगा !!!
अभी हाल का नीरज ग्रोवर मामला हो
या विगत जेसिका लाल ,भारती यादव, प्रोफ़ेसर सभरवाल या कई अन्य मामले
जिनमें दोषियों को सजा दिलाने में जन आन्दोलन भी असफल रहे !
इस तरह के कई ऐसे मामले हैं जिनमें
पीड़ित परिवार ने वर्षों तक अपनी हर साँस के साथ निरंतर
न्याय पाने की कोशिश जारी रखी !
किन्तु भ्रष्ट व्यवस्था के चलते
न्यायालय तक साक्ष्यों को बिना तोड़े मरोड़े नहीं पंहुचाया जा सकता !
यह सड़ी गली व्यवस्था निकट भविष्य में बदलती नहीं दिख रही !
ऐसे में यदि दुर्भाग्य से कोई आम आदमी पीड़ित होता है
तो परिजनों को अपनी औकात पहचानते हुए
या तो खून के आंसू के घूँट पीकर चुपचाप बैठ जाना चाहिए
अथवा
किसी एक परिजन को दोषी को सजा देने / दिलाने का कार्य सोंपकर
उस परिजन को हर पारिवारिक जिम्मेदारी से मुक्त कर देना चाहिए !
ताकि परिवार का हर सदस्य पलपल तिलतिल कर मरते हुए
न्याय पाने की मृगमरीचिका में वर्षों तक कई कई बार ना मरता रहे !
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