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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

क्या हक़ है मुझे उपदेश देने का ???

swasasan team always welcomes your feedback. please do.
{ कुछ पाठक मेरे लेखों को पढ़ते हुए
मेरे सुझावों/ संदेशों को अव्यवहारिक मान सकते हैं ..
इसीलिये यह अग्रिम स्पष्टीकरण देना अपना कर्त्तव्य समझ प्रस्तुत कर रहा हूँ } -
निवेदन -
“उपदेशक के व्यक्तित्व से अधिक सन्देश की उपयोगिता को महत्त्व देना चाहिए ”
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं -
पर उपदेश कुशल बहुतेरे …
हममें से अधिकांश
किसी उपदेश की प्रतिक्रिया में
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित
उक्त पंक्तियाँ दोहरकर
उपदेशक पर अव्यावहारिक होने का दोष मढ़ने में ही
अपना भला समझते हैं .
मजेदार बात यह है कि
आधी चौपाई ही प्रचलित है
अधिकाँश को तो पूरी चौपाई याद आ ही नहीं पाती

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

‘लिव इन ‘ ना बदलाव ना भटकाव्’- उपसंहार

‘लिव इन' ‘ ना बदलाव ना भटकाव्’- उपसंहार
मेरा स्वयं का भी परम्परागत अथवा प्रेम-विवाह अथवा किसी भी अन्य तरह के विवाह
जिनमें गन्धर्व विवाह भी सम्मिलित है किसी तरह का कोई विरोध नहीं है !
मेरे मत में सर्वाधिक उत्तम आर्यों का सप्तपदी विवाह ही है !
बशर्ते वर-वधु दोनों को अपने अपने सातों वचन याद हों
और वे इनपर चलने तत्पर हों !

वचनवद्ध हों !
किन्तु प्रचलित परम्परागत विवाह धीरे धीरे आधुनिकीकृत होते गए एवं
एवं होते जा रहे हैं !
परिवर्तन का उदहारण कुछ इस तरह है कि
मेरे दादाजी की पीढ़ी वाले समय में
वर - वधु एक दुसरे को ना तो देख पाते थे ना जीवन साथी के मायने समझ पाते थे !
शादियाँ बचपन में हुआ करती थीं !
शौक से माता पिता पुत्रवधू को युवा होने से पूर्व गौना करा भी लेते तो भी
दोनों को आपस में वार्तालाप या तो बचकाना होता था या
सबकी मोजूदगी में शर्मिला सा !
यह लगभग 100 वर्ष पुराना मेरे परिवार का सुना हुआ चलन था !
किन्तु मेरे गाँव वालों के परिवार में मैंने स्वयं अभी ही
मात्र 31 वर्ष पहले यही सब अपनी आँखों से देखा !
जिसमें वर और वधु शारीरिक मिलन हेतु तत्पर होने के
वर्षों पूर्व से ही अपने भावी साथी से विवाहित हो उसे जानते होते थे ,
समझने की उम्र होने पर उनके मन में कोई काल्पनिक स्वप्न संगी ना होकर
उनके अपने जीवन साथी का स्पष्ट व्यक्तित्व होता था !
तब किसी परपुरुष को और काफी हद तक पर स्त्री को भी
स्वप्न में भी ना सोचने वाला कथन सत्य के अधिक निकट था !

मेरे परिवार में यह मेरे पिता की पीढ़ी के विवाह के समय
वर और वधु के युवा होते होते होने विवाह होने और गौने की प्रथा ख़त्म होने के रूप में
लगभग 60 -70 वर्ष पूर्व हो गया था !
तब भी ठीक था जिस समय वर और वधु वरीच्छा की आयु में पंहुचते उनका साथी उनके सामने स्पष्ट होता था!
किन्तु मेरे गाँव में वह 70 वर्ष पीछे चलने का क्रम अभी भी बना हुआ है !
मेरे गाँव वालों के परिवार में अब भी वर वधु की युवावस्था की दहलीज पर पंहुचते-पंहुचते विवाह होना शुरू हुआ है !
मेरे पिता की पीढ़ी तक के शहरी, कस्बाई और गाँव के, आज के भी,
विवाहितों में चारित्रिक पतन, प्रेमविवाह ,सम्मान ह्त्या (आनर किलिंग ), विवाहेत्तर सम्बन्ध, पारिवारिक विघटन , मनमुटाव , दहेज़ , दिखावा और तलाक जैसी सामाजिक बुराइयां यदाकदा अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहे हैं/ हैं !
किन्तु मेरी पीढ़ी और मेरे बाद की वर्तमान पीढ़ी के आते-आते
ये सभी बुराइयां चरम पर पंहुच चुकी हैं !
( मेरे ) गाँव में नगण्य हैं

किन्तु अन्यत्र
कन्या को जन्मने भी नहीं दिया जा रहा !
क्या समाज में व्याप्त ये सामाजिक बुराइयां जिम्मेदार नहीं हैं ?
कन्या भ्रूण ह्त्या की ?
मेरे समकालीन और वर्तमान यानी लगभग 30 -40 वर्ष के हालिया इतिहास में
परिस्थितियाँ तेजी से इन बुराइयों की ओर बदली हैं !
कारण वयःसंधि की आयु में सपनों के जीवन साथी की मात्र काल्पनिक छवि !
अथवा अपने आसपास उपलब्ध आदर्श व्यक्ति की ओर मन ही मन / मुखर आकर्षण !
ऐसे आकर्षण का पता माता-पिता को लगने से पूर्व ही अथवा लगते ही
अन्यत्र विवाह बंधन में बंधने की विवशता !
किन्तु पूर्वनिर्धारित काल्पनिक जीवनसाथी की छवि यथार्थ से जुड़ने में सदैव बाधक !
परिणाम - मनमुटाव , बिखराव ,विवाहेत्तर सम्बन्ध, अलगाव, हिंसा , ह्त्या और तलाक !
एक मनोवैज्ञानिक सर्वे के अनुसार प्रत्येक युवा व्यक्ति विवाह से पूर्व अवश्य ही
किसी ना किसी के रूप में अपना जीवन साथी संजो चुका होता है !
एक और सर्वे के अनुसार प्रथम प्रेम अविस्मर्णीय तो होता है किन्तु
इसका सर्वश्रेष्ठ होना / सर्वाधिक महत्वपूर्ण होना आवश्यक नहीं !
किन्तु यदि प्रथम प्रेम साथ हो और विशेष त्रुटी रहित भी हो तो
किसी अन्य बीज के अंकुरण की संभावना अशेष ही होती है !
ऊपर मेरे दादाजी और पिताजी के समय के विवाह पद्धतियों का वर्णन कर
पूर्व प्रचलित मिलन से पूर्व किन्तु विवाहोपरांत लिव-इन का भी उदाहरण दिया है ,
और वयःसंधि के समय के जीवन साथी की स्पष्ट प्रथम प्रेम की छवि का भी !
दहेज़ और आडम्बर रहित विवाह व्यवस्था होने के कारण
न्यून क्लेश की परिस्थितियों में विवाह संपन्न कर
जीवन पथ पर अग्रसर होते प्रथामान्कुरित प्रेम युक्त युगल की स्थिति का भी !
आज कहाँ है ऐसे हालात !
किस टाइम मशीन में बैठाकर वर वधु को
प्रथामान्कुरित प्रेम वाली वयः संधि आयु पर वापस ले जाया जा सकता है !
यदि यह संभव नहीं तो जिस तरह भी हो दोनों को एक दुसरे को
पूरे मन से वरण किया जाए महत्पूर्ण यह है,
ना की समाज की हमारी अपनी बनाई हुई पूर्व मान्यताएं
जिन्हें हम लम्बे विरोधों के बाद ही सही
कालान्तर में बदलने विवश होते रहे हैं ,,,,
और आगे भी होते रहेंगे ....!!!!!
जहाँ तक लिव-इन को मान्यता का प्रश्न है तो
विवाह के मजबूत होने का आधार कारण बन सके
भविष्य में जुड़ने की आकांक्षा सहित , यौन संपर्क रहित स्वस्थ सहवास तो स्वागत योग्य !
अन्यथा पूर्वकाल के गन्धर्व विवाह की तरह ही हेय !!!!!
राम की तरह एक पत्नीव्रती पुरुष
और सीता सावित्री कि तरह समर्पित स्त्री
सदैव आदरणीय रहे हैं
और युगों तक रहेंगे !
ना मुझे इस पर कोई संदेह है ,
ना मेरा कोई और सन्देश !
धन्यवाद !
जय हिंद !

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

‘लिव इन ‘ ना बदलाव ना भटकाव्’-भाग २

SwaSaSan Welcomes You...
‘लिव इन'  'ना बदलाव ना भटकाव्’-भाग २
आप सबकी असहमति का बहुत बहुत धन्यवाद् !
मैं आलोचक हूँ और स्वस्थ आलोचना का पूरे ह्रदय से स्वागत करता हूँ !
फिर भी कुछ स्पष्टीकरण आवश्यक हैं जो देना मेरा कर्त्तव्य भी है -
मैंने लेख में जगह-जगह " स्वस्थ " साहचर्य (लिव - इन ) लिखा है !
इस स्वस्थ को इस उदहारण से स्पष्ट करना चाहूँगा
मेरी होने वाली पुत्रवधू विगत वर्ष से मेरे परिवार में बेटी की तरह निवास रत है
और अभी भी वे दोनों
 ना तो अंतिम निर्णय तक पंहुचे हैं
 ना ही उनके बीच कोई अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध हैं !
 मेरे परिवार को मेरी उस वर्तमान बेटी
और भावी बधुपुत्री से मिले अनुभव इतने सुखद हैं
कि यदि आगे वह किसी अन्य घर की शोभा भी बने
तो भी हम आपस में शर्मिन्दा नहीं होंगे !
 ना ही दुखी !
वो है ही इतनी अच्छी बच्ची !
दूसरी ओर मेरे बहुत निकट विवाह के बंधन को ढोते हुए वे जोड़े भी हैं
जो सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप
विवाहोपरांत लिव-इन में तो साथ साथ हैं
किन्तु
विचारों में कहीं दूर किसी और के साथ !
वैसे सभी को जानकारी होगी ही कि आधुनिकतावादी देशों में भी
 लिव-इन ने विवाह का स्थान नहीं लिया है !
विवाह के मार्ग के रूप में ही प्रचलित है लिव-इन वहां भी !
पहले दुसरे अथवा किसी भी क्रम के साथी के साथ वे भी आखिर विवाह ही करते हैं !
उनमें उन्मुक्त यौन संपर्क बहुत पहले से प्रचलित है
 किन्तु
आज भी ब्रिटेन की राज-वधु बनाने हेतु
रक्षित-कौमार्य युवती को ही मान्यता मिली हुई है !
यानी वहां भी कुलीन होने के लिए  सच्चरित्र होना अनिवार्य है !
मेरी स्वयं अनेक युवाओं से यौन उन्मुक्तता पर चर्चा होते आई है !
 जितनी तेजी से पुरुषों में कौमार्य को महत्त्व देना घटा है
उससे कई गुना तेजी से आधुनिक युवतियों में
 कौमार्य के प्रति एक नई सोच जन्मी है !
 (दो-तीन माह के संयम से सब ठीक हो जाता है ) !
वैसे यदि मेरे व्यक्तिगत विचार की बात करूँ तो
 मेरे लिए बलात्कार (भावनात्मक / परिस्थितिजनक) पीड़िता की
शारीरिक शुचिता के स्थान पर आत्मा की शुद्धता पर विचार अधिक उपयुक्त है !
किसी भी तरह के बलात्कार से किसी भी स्त्री/ पुरुष  का तन या मन मैला नहीं होता !
 ना पीड़ित को अपनी आत्मा पर किसी तरह का अपराध बोध समझना चाहिए !
लिव-इन में ठगे गए दुर्भाग्यशाली व्यक्ति भी ऐसे ही
भावनाओं के बहकावे के माध्यम से किये गए लगातार बलात्कार के शिकार व्यक्ति हैं !
युवतियों के साथ-साथ युवक भी हैं इनमें !
 मंच के अन्य ब्लोगरों ने भी अभी तक लिव-इन पर जो लिखा है !
मेरा मत उनसे अधिक भिन्न नहीं है !
हाँ लेकिन रखैल या कीप के लिए पुरुष वर्ग को दोष देना उचित नहीं है !
पुरुष से कहीं बहुत अधिक स्त्री को लिव-इन / रखैल में सामाजिक सुरक्षा मिलती है !
सामान्यतः रखैल का खर्च उसका पुरुष साथी ही उठा रहा होता है !
जो उस पुरुष की सामान्य यौन तुष्टि हेतु स्त्री को किये जा सकने वाले
 तात्कालिक प्रतिकार (नगद/उपहार आदि ) से कहीं बहुत अधिक है !
यह अतिरिक्त खर्च ही उस पुरुष को उस स्त्री को
स्वयं हेतु आरक्षित रखने का अधिकार भी देता है !
साथ ही रखैल स्त्री भी अपने पुरुष साथी पर पत्नी सा अधिकार जता
अन्यत्र भटकने से रोकते देखी जाती है !
मेरे अपने स्वदर्शी कुछेक प्रकरण ऐसे भी हैं जिनमें लिव-इन / रखेला का
 पूरा खर्च स्वयं स्त्री द्वारा वहन करते पाया है !
निश्चय ही दोनों की आवश्यकता की पूर्ती का आपसी समझौता है लिव-इन !  
जब तक सामंजस्य है सब ठीक !
नहीं तो दोनों दूजे की ओर अंगुली उठाते ही हैं !
 किसी रखैल / रखेला को कभी तालों में बंद कर रखते किसी ने नहीं देखा होगा !
फिर भी दुसरे तीसरे जीवन साथी के रूप में लिव-इन वालों में से
 १% से भी कम आजीवन जीवनसाथी रह पाते हैं अन्यथा 
अन्य अधिक उपयुक्त साथी के मिलते ही ऐसे अस्थायी साथ टूट जाते हैं !
विवाह व्यवस्था में मेरा पूरा विशवास है !
किन्तु महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में प्रचलित
भावी वधु का अल्पकालीन ससुराल में परिजनों के बीच ' लिव-इन '
अंतिम कदम उठाने से पूर्व का समझदारी भरा चलन कहूँगा !
दहेज़ और जातिगत प्रथाओं के प्रतिहार हेतु यदि केवल विवाह रहित लिव-इन ही विकल्प बचे
तो दहेज़ और संकीर्ण जातिवाद के मुकावले लिव-इन को मेरा मत है !
विवाह व्यवस्था सर्वोत्तम हो सकती है बशर्ते दहेज़ और जाती को पृथक रखा जाए !

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

'लिव इन ' ना बदलाव ना भटकाव्'

SwaSaSan Welcomes You...

'लिव इन ' ना बदलाव ना भटकाव्'
[(मूलतः जागरण जंक्शन पर  )
एक अच्छे बिषय को उठाने हेतु धन्यवाद् !
विषय एवं उठाये गए प्रश्न दोनों जटिल हैं .]
.
  लिव इन से पहले विवाह व्यवस्था पर विचार करना जरूरी है,
जिसके कारण लिव इव पर प्रश्न उठाने की आवश्यकता पड़ी!
ज्ञात प्रामाणिक इतिहास ,धार्मिक मान्यताओं और वैज्ञानिक तथ्यों से स्पष्ट है कि
विवाह व्यवस्था का प्रादुर्भाव बाद में हुआ है !
उससे पहले 'बाबा आदम और हब्बा' या 'एडम और ईव' या 'मनु स्मृति ' या किसी भी अन्य नाम वाले
पहले जोड़े के विवाह का कोई उल्लेख कहीं नहीं मिलता !
विज्ञान प्रामाणिक प्राचीनतम धर्म हिन्दुओं के मूल देवताओं में से भी
केवल शिव विवाह का ही प्रसंग वर्णित है !
बाद में वर्णित अवतारों में से भी केवल राम ने ही विवाह की मर्यादाओं को निभाया है !
यानी संक्षेप में विवाह व्यवस्था से पूर्व दीर्घकालिक , अल्पकालिक अथवा क्षणिक लिव इन ही प्रचलित था !
विकास वाद के सिद्धांत को उचित मानें तो
निश्चय ही लिव इन की त्रुटियाँ दूर करने के उद्देश्य के साथ ही
बाद में विकसित विवाह व्यवस्था अधिक अच्छी होनी चाहिए !
किन्तु जिस तरह लिव इन की त्रुटियों में किये गए सुधारों ने विवाह व्यवस्था को जन्मने
और यौन तुष्टि हेतु आदर्श व्यवस्था बनने का अवसर दिया
आगे होने वाले सुधारों और प्रचलनों ने इस आदर्श व्यवस्था में त्रुटियों को जन्म दिया !
विवाह व्यवस्था की आवश्यकता स्त्री को उपभोग की वस्तु से
समाज का अंग बनाने की आवश्यकता पड़ने पर हुई होगी !
श्री कृष्ण के युग तक आते आते स्त्री देवी से दासी की स्थिति में पहुँच चुकी थी !
स्त्री-पुरुष अनुपात जो भी रहा हो पति-पत्नी अनुपात अजीब हो चूका था !
श्रीकृष्ण की १६००८ पत्नियों की तुलना में द्रोपदी ५ पतियों की पत्नी ....!
ऐसी विसंगति के काल में में जनसाधारण में से अनेक पत्नी विहीन ही रहे होंगे !
स्त्रियाँ केवल सबल और संपन्न व्यक्ति के साहचर्य को ही वरीयता देती होंगी ,
बिना यह विचारे कि उसका क्रम/ स्थान कोनसा है !
तब सभी को उचित सहचर्य के उद्देश्य से विधिवत विवाह को मान्यता मिली होगी !
तब स्त्री को व्यक्ति होने का बहन हुआ होगा और व्यक्ति होने का अधिकार मिला होगा !
वैसे तो अभी अभी बीते इतिहास में और कहीं कहीं वर्तमान में भी
राजाओं से लेकर जनसाधारण द्वारा स्त्रियों को 'बेटियों ' के स्थान पर
सुन्दर वस्तु के रूप में दुसरे राजा अथवा व्यावसायी को निहित स्वार्थ ( तथाकथित विवशता )
हेतु सोंपने के अनेकों उदाहरण हैं किन्तु
सभ्य समाज में अधिकतर बेटी को उचित वर से व्याहने का पिता / परिजनों का
उत्साह देखते ही बनता है !
उचित वर मिलने पर पिता / परिजन अपने सामर्थ्यानुसार धूमधाम से
हार्दिक आशीषों के रूप में भर सामर्थ्य उपहारों से सजाकर अपनी बेटियों का विवाह करते रहे हैं !
किन्तु दोनों पक्षों उपहार देने वाले और पाने वाले दुसरे उदाहरणों से होड़ कर अपने लिए भी वैसे ही
उपहारों और धूमधाम की आशा और बाद में शर्तें रखने लगे !
यहाँ आकर विवाह व्यवस्था दूषित हो गई !
हर काल में हर बुराई के विरुद्ध अनेक क्रांतिकारी सामने आते रहे हैं !
ऐसा ही इस बुराई के सन्दर्भ में भी हुआ !
और कई प्रगतिवादी युवक-युवतियों ने एक दुसरे को बिना किसी ताम झाम के
एक दुसरे का जीवन साथी बनाना स्वीकारा !
किन्तु ऐसे विद्रोही युवक-युवती शेष बुराइयों के साथ साथ जातिगत भेदभाव की
बुराई के विरुद्ध भी कदम उठाने लगे !
जिसके परिणाम में समाज में तिरस्कार और मौत की सजा तक मिलने लगी !
जबकि विवाह रहित किसी भी अन्य रिश्ते की आड़ में (बहन-भाई से पवित्र रिश्ते तक ) साहचर्य में
किसी को कोई आपत्ति नहीं है !
दूसरे....
कई आदिवासी कबीलों में घोटुल जैसी प्रथा ....
कई महाराष्ट्रियन जातियों में वधु को विवाह पूर्व ससुराल भ्रमण कराने की प्रथा .....
आदि की ही तरह लिव इन में भी
आजीवन सामाजिक और कानूनी रूप से आसानी से ना तोड़े जा सकने वाले बंधन में बंधकर
सारा जीवन असंतुष्टि में गुजारने से बेहतर है कि एक दूसरे को जान लिया जाए !
यदि उचित लगे तो साथ साथ अन्यथा...
तुझे तुझसा और मुझे मुझसा कोई और मिलने कि दुआ के साथ अलग अलग ....
अंजलि गुप्ता जैसे जिन कटु उदाहरणों को हम देख रहे हैं
वे लिव इन के वास्तविक उद्देश्य से कहीं दूर
अनैतिक सहचर्य की इच्छित स्त्री का
कामोत्ताजना की दशा में पुरुष से लिए वचन को निभाने के दबाव
और असफलता की दशा में हताशापूर्ण उठए कदम का उदाहरण हैं !
इनका लिव इन से कोई सम्बन्ध नहीं है !
मैंने मेरे यौवनकाल से लेकर मेरे बेटे- बेटियों के यौवन काल तक
स्वस्थ लिव इन के सुपरिणाम अधिक देखे हैं !
दुष्परिणाम नगण्य !
इसीलिये मैं स्वस्थ लिव इन को सर्वथा उचित और प्रासंगिक मानता हूँ !
उपरोक्त में ही उठाये गए सभी प्रश्नों के उत्तर भी समाहित हैं !
1. क्या लिव इन संबंध में रहने वाले जोड़े विवाह संबंध में रहने वाले दंपत्ति के समान अधिकार पाने के हकदार हैं?
-नहीं !
२. क्या लिव इन संबंध भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध है?
-नहीं !
3.यदि लिव इन संबंध को वैवाहिक संबंध के बराबर अधिकार मिल जाए तो क्या दोनों के बीच अंतर खत्म हो जाएगा?
-हाँ किन्तु ऐसा होना नहीं चाहिए !
४.लिव इन संबंधों को कानूनी वैधता दिए जाने के क्या लाभ है?
- कोई लाभ नहीं ! क्योंकि वयस्क स्त्री-पुरुष को बहला फुसलाकर कुछ भी करवाना असंभव है !
फिर साथ रहने विवश करने जैसा तो कुछ हो ही नहीं सकता !
दो वयस्कों का परीक्षण में साथ रहने का निर्णय साझा है तो
किसी एक का दूसरे को भविष्य में भी साथ देने विवश करना अन्याय ही होगा !
हाँ यदि इस बीच दोनों के संयोग से कोई संतान जन्मति है तो
भारतीय उत्तराधिकार कानूनों का संरक्षण मिलना चाहिए !

सोमवार, 26 सितंबर 2011

मैं और मेरा देश

SwaSaSan Welcomes You...

मैं और मेरा देश 

अक्सर हम हमारे देश और समाज की कुरीतियों, कुशासन  कुप्रबंधन , कुप्रथाओं
और कपट आदि पर खुलकर खुन्नस निकाल रहे होते हैं ! हमारी इस हरकत के हामी
हमसे हमारे कई साथी भी मिल जाते हैं किन्तु ..... कभी खुद अपने आप पर सोच
कर भी देखा जाए !
हमारे देश , समाज, गाँव , शहर, कुल , परिवार और खुद अपनी दुर्दशा के दोषी
स्वयं हम भी कम नहीं निकलेंगे !
उससे भी बढ़कर बिडम्बना यह की हमेशा सुधरने की अपेक्षा दूसरों से , सुधार
की अपेक्षा दूसरों से , क्रान्ति की शुरुआत की अपेक्षा दूसरों से,
आन्दोलन / समर्थन / सहयोग की अपेक्षा भी दूसरों से ही किन्तु उपभोग के
समय हम खुद को सबसे बड़ा अधिकारी मानते हैं !
क्यों ????????????????????????

 

 

सोमवार, 19 सितंबर 2011

नीतीश कुमार , मोदी जी और अमेरिका का हम पर प्रभाव !

नीतीश कुमार , मोदी जी और अमेरिका का हम पर प्रभाव !
किसी अमेरिकी रिपोर्ट में मोदी जी को विकास का पुरोधा कहा गया है !
बस इतना काफी था हम भारत वासियों को ?
सब के सब मोदी जी को ऐसे अगले प्रधान मंत्री के रूप में देखने लगे
जो देश को भी गुजरात की तरह प्रगति पथ पर ले जाएगा !
मैं अमेरिकी एजेंसी और मोदी जी
दोनों की योग्यता पर अविश्वास का कोई कारण नहीं पाता हूँ !
किन्तु उस एजेंसी के उत्तमता घोषित करने के मापदंड उचित नहीं लगे !
क्योंकि , गुजरात आज से नहीं वर्षों पूर्व से ही व्यवसाइयों की
विशेष विचारधारा का गढ़ रहा है !
विशिष्ठ जनों की जन्मभूमि !
जिनमें गांधी जी से युग पुरुष भी थे
और अम्बानी जी से क्रांतिकारी व्यवसायी भी हुए !
गुजराती (मारवाड़ी) व्यवसायी सारे देश ही नहीं सारी दुनियां में
सफल व्यवसायी के रूप में जाने जाते हैं !
ऐसा प्रदेश यदि विकास दर में दुसरे प्रदेशों से आगे है तो
यह भी देखना होगा की बाकी देश में भी विकासदर में बढ़ोतरी जारी है !
यानी परिस्थितियाँ काफी कुछ विकास के अनुकूल निर्मित हुई हैं !
किन्तु भारत में एक ऐसा भी प्रदेश हुआ करता था
जहाँ केवल जंगल राज चलता था !
जी हाँ नीतीश से पहले का बिहार !
नीतीश जी के शासन काल में वहां जंगलराज की तस्वीर बदल कर
विकास की तस्वीर बन रही है ,
वह देखने के मापदंड थे ही नहीं अमेरिकी एजेंसी के पास !
यदि विपरीत परिस्थितियों और अन्य क्रियाकलापों को ध्यान में रखते हुए
ईमानदारी से विचार करें तो मोदी जी से पहले
सर्वप्रथम नीतीश कुमार जी का नाम लिया जाना चाहिए ,
फिर संशाधन विहीन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज जी का
तब मोदी जी का नंबर आता है !
यह एक सुखद संयोग है की तीनों भाजपा के हैं
या भाजपा के सहयोग से पद पर हैं !

बुधवार, 14 सितंबर 2011

हिंदी के दुश्मन खुद हिंदी भाषी ! -1

SwaSaSan Welcomes You...
1- (कैसे )
 हिंदी  दिवस पर...
हिंदी की  दुर्दशा के  दोषी  हम  हिंदी  भाषी स्वयं  ही  हैं  !
जी  हाँ ! मैं  मेरे  सिद्धांतों  के  विरुद्ध  आज  इस  अवसर  पर  नकारात्मक  कहने  को  विवश  इसीलिये  हूँ  की  आज  के  दिन  शायद  हिंदी  में  लिखा  हुआ  पढ़ने  में  हिंदी  भाषियों  को  रूचि  हो !
 ये  मेरा  फलसफा  नहीं  कटु  अनुभव  बोल  रहा  है !
आपको  प्रसंगवश  बताना  आवश्यक  है  की  मेरे  लिखे  लेख  ' मेरा  राज  देश  पर  तो  देश  का  दुनियां  पर  ' के  लिए  मुझे  ' राष्ट्रीय  रत्तन  अवार्ड -2009 ' हेतु  ' सिटिज़न्स   इंटीग्रेशन एंड  पास  सोसाइटी  इंटर्नेशनल ' द्वारा  आमांकित  किया  गया  था . ( इस  संस्था  का  मुख्यालय  USA में  है  और  लेख  के  अंश  SwaSaSan पर  ) . मैं  अर्थाभाव -वश  समय  पर  ना  तो  फोटोग्राफ  आदि  जानकारी  भेज  सका  ना  समारोह  में  सम्मिलित  होने  दिल्ली  तक  जा सका ! किन्तु  इस  नामांकन  से    प्रेरित  हो  मेरा  ब्लॉग  स्वशासन  और  बाद  में  वेबसाइट  ( हिंदी  ) शुरू  की  ! पिछले   16 ऑक्ट  2010 से  आज  तक  मेरे  ब्लॉग  पर  कुल  लगभग  980 क्लिक  हुए  हैं  ! मुझे  मेरे  ब्लॉग  के इन आंकड़ों  के  विश्लेषण  से  आश्चर्य  दुःख  और  घोर  निराशा  होती  है  ! इसीलिये  नहीं  की  गिनती में कम  हैं  वरन  इसलिए  कि  इनमें  से  आधे  से  अधिक  विदेशों  से  हैं ! मुझे  दुःख  है  कि  कनाडा  और USA की  एक  से  अधिक  वेबसाइट  मेरा  प्रचार  कर  प्रोत्साहन का प्रयास  करती  हैं  ! सबसे  ज्यादह  USA में  मुझे  पढ़ा  जाता  है  !
चलिए  बात  यहीं  तक  होती  तो  भी  ठीक था  किन्तु  आगे  जो  लिखने  जा  रहा  हूँ  वह  या  तो  मेरा  दुर्भाग्य  है  या  हमारे  कुंठाग्रस्त  समाज  की  विकृत  बिडम्बना !
मई  मार्केटिंग  में  राष्ट्रीय  स्तर  पर  सम्मानित  किया  जा  चूका  हूँ  तो  निश्चय  ही  मेरा  परिचय  क्षेत्र  विस्तृत  होगा  ही ! मेरे  परिचय  क्षेत्र  के  लगभग  हर  व्यक्ति  से  ( जो  हिंदी  और  नेट   की  समझ  रखते  हों  )
ब्लॉग  पर  जाकर  पड़ने और  उनकी  समस्याओं  के समाधान पाने  का विश्वास दिलाया  किन्तु ....  करीब  3-3.5 हजार  लोंगों  में  से  किसी  से  भी  या  तो  ब्लॉग  पर  जाना  नहीं  हो  पाया  या  आधे  से  अधिक  ने  हिंदी  ठीक  से  समझ  ना  आने  की  विवशता जताई !
मुझे  लगा  शायद  हमारे  देश  में  इन्टरनेट  के  प्रति  जागरूकता  की   कमी  है  इसीलिये  लोगों  की  रूचि  कम  है सोचकर  मैने  मेरे  बहु-उपयोगी  ढाई   पेज  के  लेख  ' सुख  के  साधन  ' की  50 प्रतियाँ  छापकर  मेरे  कार्यालयीन  सहयोगियों  और  परिचितों  में  से  केवल  उन  जरूरतमंदों  को  दी  जिन्हें  इसकी  पढ़ने  की  सख्त  जरूरत  मुझे  महसूस  हुई  ! पिछले  6 माह  में  से  केवल  2 व्यक्तियों  ने  ही  पढ़ना  स्वीकार  किया  ( कहा हाँ  यही  सच  है  सुख  हमारे  अपने  हाथ  में  है हमारे गुरूजी भी यही कहते हैं ) शेष  48 को  ढाई  पेज  पढ़ने  का  समय  नहीं  मिल  पाया ! और इनमें वे लोग भी शामिल हैं
जो मार्गदर्शन लेने ही मेरे पास आये थे ! 
अधिकांश लोग अपने बच्चों की समस्या मेरे सामने रखते हुए सलाह के रूप में ( मुफ्त )ऑनलाइन ब्लॉग बच्चे को पढ़वाने की सलाह शुरू से नकारते हुए बहुत इतराते हुए कहते हैं -
  " हिंदी में है ? हमारे बच्चे तो हिंदी के नाम से ही चिड जाते हैं !"
" शुरू से इंग्लिश मीडियम में ही पढ़े हैं ना ! "
" अब हिन्दी कौन पढ़ता है ? "
" बस अ आ इ ई तक ही सीख पाए फिर जरुरत ही नहीं पड़ी ! "
" जनरल हिंदी में पास होने लायक आ जाएँ "
" और कोई उपाय बताइए ... जो खर्च लगेगा हम कर लेंगे !"
यहीं से मेरा दिमाग घूम जाता है 
[और मैं उनसे नम्रता से चले जाने को कह देता हूँ ! ]  
   मेरे कार्यालयीन नए सहयोगी उनहत्तर , उन्सठ, उनचास 
में भ्रमित हों तो चल जाए किन्तु पेंतालिस की अंग्रेजी में 
गिनती फार्टी फाइव भी उन्हें बताना पड़ती है !
तब अपने भारतीय
[ होते हुए जूता उतारकर ना मार पाने की मजबूरी के कारण  ] होने पर सचमुच शर्म आती है !!!
  [ मेरा तंत्र के विरुद्ध आक्रोश और अकेलापन 
मुझे तीन तीन बार सड़कों पर ला चूका है !
किन्तु पछतावा नहीं है मुझे !
ईश्वर , समुन्दर की लहरों सा होंसला और ताकत बनाये रखे बस !]
मेरे आक्रोश पर भी आक्रोश आता है मुझे 
क्योंकि जिनपर मेरा गुस्सा है,
क्या वे ही लोग जिम्मेदार हैं इस स्थिति के लिए ???
सोचता हूँ तो केवल 10 % दोष उनका पाता हूँ !
शेष 90 % तो वही तंत्र जिम्मेदार है !!!!!!!
(मित्रो; क्षमा करें ! कुछ आकस्मिक विवशता आ गई है अतः शेष अगले भाग में , अगले सप्ताह तक !) 

रविवार, 10 जुलाई 2011

ACTUAL INDEPENDENCE !!!

SwaSaSan Welcomes You...
वास्तविक आज़ादी की ओर ...
स्वसासन 
आजाद भारत के हम आजाद नागरिक
केवल मनमानी करने की आज़ादी [???]
को ही आज़ादी ना मानें !
हमारे कुछ बुनियादी अधिकार हैं तो 
कुछ आवश्यक कर्त्तव्य भी !
.
वास्तविक आज़ादी के लिए हमारा जागृत होना आवश्यक है .
स्वसासन इस दिशा में प्रयत्नशील है !
स्वसासन के सुझाव /मांगें / घोषणा पत्र 
कुछ इस तरह हैं -
.
आनलाइन वोटिंग 
.
[ ताकि व्यस्त एवं अनिच्छित वोटर भी आने वोट दे सकें !
यदि वर्तमान सरकार व्यवस्था नहीं कर सकी तो स्वसासन समर्थित सरकार अवश्य करेगी  ]
.
संविधान में आवश्यक उचित संशोधन 
.
[हमारा संविधान उच्च कोटि के प्रावधानों से परिपूर्ण तो है
किन्तु इन के कठोर परिपालन सुनिश्चित करने हेतु अभी भी कुछ सुधार  आवश्यक ]
.
सुचारू शासकीय कार्य सम्पादन  
.
प्रत्येक शासकीय /अशासकीय कार्यालय में कार्यवाही सुनिश्चित करना 
[शासकीय कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा अपने वेतन को आय का मुख्य  श्रोत  नहीं मानता
ऐसे कर्मचारियों से निजात हेतु
पुलिस अदि विभागों में उचित वेतन,सुविधा, सेवा शर्तें व
  उचित कार्यसम्पादन हेतु तत्पर कर्मियों को ही सेवा लाभ ]
कुशल अधिकारी, कर्मचारी, राजनीतिज्ञ, नागरिक को
बड़े पारितोषिक  की व्यवस्था 
एवं    

भ्रष्ट / असक्षम/ या /लापरवाह  अधिकारी, कर्मचारी, राजनीतिज्ञ, नागरिक को
कड़े दंड की व्यवस्था
.
 सुलभ एवं सुनिश्चित न्याय 
.
न्यायपालिका से १००% सुनिश्चित न्याय
[हजार दोषी छूट जाएँ पर किसी निर्दोष को सजा ना हो !
को बदलकर 
'ना कोई निर्दोष सजा पाए ना कोई दोषी छूट पाए '
पर लाना ]
.
केवल इतने सुधार भी हो जाएँ तो देश दस गुनी तेजी से 
प्रगति पथ पर चल पड़े 
किन्तु बिना आप सबके जागरूक सहयोग के 
ऐसा कोई सुधार नहीं हो सकता !
इन विचारों के समर्थक 
/
नए रचनात्मक सुझावों के स्वामी 
संपर्क कर रूचि प्रदर्शित करें 
/
स्वप्न साकार संघ की सक्रिय सदस्यता लें !
प्रत्येक बिंदु पर विस्तृत अगली कड़ियों में ...

शनिवार, 9 जुलाई 2011

THE TIME MACHINE REVEALED !!!!!!!!!

SwaSaSan Welcomes You...
Believe It Or Not 
BUT.....
THE TIME MACHINE REVEALED !!!!!!!!!
Just Think !!!
If so called Time Machine could made real !
Many of us would like to become King of The Universe !
Many of us would like to fulfill their Ambitions !
Many of us would like to become Master of Rest of The World !
Many of us would like to ruin many others !
Just by pushing a button ! 
NOW ALL ABOVE CAN MADE POSSIBLE !!!
[Excluding harm others ]
but with some limitations ! . 
The Time MachineThis is only a Process of 
Making You By Your Own !
You Can Do With This-
Whatever may your wish !
Visit your Past !
Repair Your Past !
Make Pleasant Your Present !
Make Your Destiny Your Own !!!
SwaSaSan is going to avail all this
on your e-mail at a nominal cast !
Make Haste .....
First 1111 needy will get it @50% Price !
.
Mail To
swasasan@gmail.com
swasasan@yahoo.com

रविवार, 3 जुलाई 2011

न्याय ! कैसा न्याय ???

SwaSaSan Welcomes You...

भारत में न्याय व्यवस्था के विगत उदहारण चीख चीख कर कह रहे हैं 
जनसामान्य शोषण को तैयार रहे !
न्याय केवल वशिष्ठ जनों अथवा धनकुबेरों के साथ किया जाएगा !
उनके अनुसार किया जाएगा !!! 
अभी हाल का नीरज ग्रोवर मामला हो 
या विगत जेसिका लाल ,भारती यादव, प्रोफ़ेसर सभरवाल या कई अन्य मामले 
जिनमें दोषियों को सजा दिलाने में जन आन्दोलन भी असफल रहे !
इस तरह के कई ऐसे मामले हैं जिनमें 
पीड़ित परिवार ने वर्षों तक अपनी हर साँस के साथ निरंतर 
न्याय पाने की कोशिश जारी रखी !
क़ानून कमजोर नहीं है देश का 
Incredible story of social justice in इंडिया
किन्तु भ्रष्ट व्यवस्था के चलते

न्यायालय तक साक्ष्यों को बिना तोड़े मरोड़े नहीं  पंहुचाया जा सकता !
यह सड़ी गली व्यवस्था निकट भविष्य में बदलती नहीं दिख रही !
ऐसे में यदि दुर्भाग्य से कोई आम आदमी पीड़ित होता है 
तो परिजनों को अपनी औकात पहचानते  हुए 
या तो खून के आंसू के घूँट पीकर चुपचाप बैठ जाना चाहिए 
अथवा 
किसी एक परिजन को दोषी को सजा देने / दिलाने का कार्य सोंपकर 
उस परिजन को हर पारिवारिक जिम्मेदारी से मुक्त कर देना चाहिए !
ताकि परिवार का हर सदस्य पलपल तिलतिल कर मरते हुए 
न्याय पाने की मृगमरीचिका में वर्षों तक कई कई बार ना मरता रहे !
   

शुक्रवार, 24 जून 2011

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-4 ["वास्तविक स्वराज " ]

SwaSaSan Welcomes You...
  ["वास्तविक स्वराज " ]

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुशासन का सबसे काला पहलु है
 जिसके विरुद्ध कई जगह से आवाज उठाई जा रही है 
जिनमें से एक नक्सल भी हैं .
नक्सलवाद का प्रारंभ भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनांदोलन के रूप में हुआ 
किन्तु हमेशा की तरह राजनैतिक नेतृत्व के प्रवेश के साथ 
यह आन्दोलन पथभ्रमित हो गया .
नक्सलियों का उद्देश्य यदि भ्रष्टाचार का खात्मा और विकास के मार्ग पर बढ़ना होता
और वे बन्दूक की बजाय सत्याग्रह जैसी गोली चलाते  होते 
तो स्वसासन भी उनके साथ होता .
स्वसासन भी देश से हर उस बुराई को दूर करने संकल्पित है

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-3

SwaSaSan Welcomes You...
[वास्तविक आज़ादी की ओर ...]
    आज सोसायटी में बहस का सबसे अहम् मुद्दा भ्रष्टाचार ही रहता है. 
किन्तु हम केवल दुसरे की ओर ही अंगुली उठाते रहते हैं.
खुद अपने अन्दर झांकना आता ही नहीं  है हमें !
वे सभी, जो आम जनता समझे जाते हैं,
सर्वाधिक भ्रष्टाचार पीड़ित होते या समझे जाते हैं 
किन्तु जिम्मेदार भी वही आम जन हैं,
इस भ्रष्टाचार की  महामारी को बढ़ाने में !

बुधवार, 22 जून 2011

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-2

SwaSaSan Welcomes You...
जरा सोचें.... क्या कारण होगा कि
 हमारा देश आज़ादी के इतने सालों बाद भी...
 हमारा अपना सा नहीं हो सका !
प्रगति तो हुई किन्तु क्या पर्याप्त है इतनी प्रगति ?
क्यों हम वह नहीं पा सके जिसके हम अधिकारी थे ? 
कारण हमारी अंग्रेजी शासन काल से जारी
शासन को जनविरोधी समझने की मानसिकता 
और इस जनविरोधी प्रशासन के विरुद्ध
कुछ ना कर पाने की असमर्थता का स्वीकार !
शायद हमें स्वयं की सामर्थ्य का...
 ना तो ज्ञान है...
 ना ही अपनी सामर्थ्य पर विशवास !
इतिहास गवाह है कि हमारी आज़ादी
 और जापान की द्वतीय विश्वयुद्ध के बाद की  तबाही
के बाद उठ खड़े होने की कोशिश
लगभग एक ही समय कि घटनाएँ हैं
किन्तु आज जापान हमसे २००- ३०० बर्ष आगे पंहुच चूका है .
आखिर क्यों ?
 सबसे पहले तो अधिकांश लोग यह जानते ही नहीं कि....

 देश की प्रगति है क्या?
देश की प्रगति देखें या हमारी अपनी  ? 

   वास्तव में किसी  भी देश की प्रगति

उसके नागरिकों की प्रगति का ही दूसरा नाम है .
प्रत्येक देश रूपी इमारत की 

इकाई  ईंट उस देश का नागरिक ही होता है ,

देश (या भारत देश) का अलग से कोई अस्तित्व है ही नहीं. 

यदि देश केवल  भोगोलिक सीमाओं से घिरा क्षेत्र ही होता 

तो हर देश आज भी उतना ही अविकसित होता जितना हम आदिम युग में थे .

आज यदि  दुसरे देश हमसे आगे हैं 

तो उन देशों के नागरिक अपना और अपने देश का हित अलग अलग नहीं सोचते / समझते  .

आपसे जब  देश की प्रगति में सहयोग की बात  की जाती है 

तो आपसे केवल

अपने हिस्से की प्रगति करने 

और दुसरे की प्रगति में 

बाधक ना बनने की आशा की जाती है .

लेकिन आपको अपनी प्रगति में खुद अपनी मदद करने के बजाय  दुसरे 

की प्रगति में बाधक बनने में अधिक रूचि होती है

जिसके लिए आपको अपना ध्यान दो दिशाओं में देना होता है और दोनों ही 

काम ठीक तरह से नहीं हो पाते . 

मजे की बात तो यह भी  है कि

हमारे सामने हमारी संपत्ति को कोई नुकसान पंहुचाये  

तो हम लड़ने मरने को तैयार रहते हैं

किन्तु हमारे ही सामने उधमी बच्चे भी 

सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ कर रहे होते हैं तो हम चुप रहते हैं 

क्योंकि हमें मालूम ही नहीं होता कि 

छोटी छोटी चीजों को खरीदते समय हमारे द्वारा चुकाए गए टैक्स जैसी राशी 

यानी हमारी पूंजी  से ही ये सार्वजनिक सुविधाएं स्थापित हुई होती हैं.   
दूसरी ओर
जापानी अपनी राष्ट्रीयता की  भावना के लिए जाने जाते हैं ,
 इसीलिये भ्रष्टाचार में नकारात्मक मेरिट में हैं .

और हम ..?

हममें से अधिकांश इस तरह के टापिक पढ़ते हुए ,

अपनी ही  मातृ भूमि को गाली देने से भी गुरेज नहीं करते !!!

यदि इस टापिक का शीर्षक यह नहीं होता तो 'देश' जैसा  बिषय देख शायद १०%

 लोग भी इसे पढ़ना उचित नहीं समझते .
(क्षमा कीजिये 22 बर्ष  पूर्व के शब्द हैं ...
जब पहली बार लेख लिखा गया....
 तब हालात ऐसे ही थे....
 मेरी अपनी पत्रिका के प्रधान संपादक भी इसे छापने  के पक्ष में नहीं थे )
जहाँ तक भ्रष्टाचार का प्रश्न है तो नीचे लिखी लाइनें देखिये
( जो मेरे मनोबल को अभी तक  बनाए रखने के लिए,  मेरे सन्दर्भ में सटीक हैं

किन्तु हर कोई ऐसा ही दिखावा करता  हैं )
अनमोल(?) मानव
-----------
बिकाऊ है हर कोई यहाँ

बिकना ही नियति है सबकी

मेरा मोल लगाया गया कई बार ...

मैंने भी तय कर ली मेरी कीमत

तुम्हारा भी मोलभाव होता होगा ..

तुमने भी लगाये होंगे दाम अपने ....

पता नहीं कितना बिके अब तक तुम..

मुझे खरीदार मिला नहीं ...

मैंने पाल लिया है भ्रम  मन में...

कि मैं अलग हूँ  सबसे....

अनमोल हूँ मैं..... .

प्रार्थना है

हे मेरे ईश्वर !

मेरा मोल ना लग पाए कभी

बनाये रखना मुझे अनमोल !
-------------
मैं कोई मसीहा या अवतार या योगी या पंहुचा हुआ साधू-संत नहीं हूँ ,
मैं भी आप में से एक आम भारतीय ही हूँ !
बस मैंने मुझे स्वयं की नजरों में गिरने नहीं दिया है !
मैं अनारक्षित वर्ग से हूँ !

(मुझे विस्तार से जानने
 " क्या हक नहीं है मुझे उपदेश देने का "
  पढ़ सकते हैं )
वर्तमान आरक्षण व्यवस्था के रहते हुए भी 
यह मानने तैयार नहीं की रोजगार के अवसर अनुपलब्ध हैं !
मेरे पिता को, मुझे और मेरे बेटों को केवल अपनी योग्यता के दम पर 
[ किन्तु योग्यता के अनुरूप ही ]
एक से अधिक रोजगार के आमंत्रण उपलब्ध रहे हैं !
समस्या अपनी योग्यता से अधिक पाने के प्रयास में 
दुसरे के हिस्से को येनकेन प्रकारेण हड़पने के प्रयास से ही जन्मती है !
यदि आवश्यकता अधिक पाने की है तो 
अपनी योग्यता का विकास आवश्यक है !
अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता के साथ साथ 
अपने कर्तव्यों का ईमानदार निर्वाह भी आवश्यक है !
[अगले अंकों  में 'क्या है हमारे हाथ में ' ]

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-1

SwaSaSan Welcomes You...

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-1


प्रथम भाग [परिचय] 

मैं यानी एक आम भारतीय , क्या चाहता हूँ और क्या करने जा रहा हूँ ? ? ?
जानने के लिए आपको पहले जानना होगा "स्वसासन" को ....
 .                       "स्वसासन"  आज़ादी के दीवानों  द्वारा आज़ादी के संग्राम के समय
देखे  गए   दिवा स्वप्न  को साकार करने हेतु संकल्पित एक मंच है . इस मंच का उद्देश्य
आगे चलकर  "स्वसासन् " (स्वप्न साकार संघ) का गठन करना भी है जो हम जैसे
सामान विचार धारा वालों का संगठन हो , जिसके माध्यम  से देश को एक स्वच्छ व
सशक्त नेतृत्व की ओर ले जाया  जा सके ...

गुरुवार, 9 जून 2011

हम भी चुप गर तुम रहो चुप

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
हमारे देश का दुर्भाग्य है कि
सत्ताधीश और विपक्ष दोनों 
चोर चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर 
आपस में दुसरे की  चोरी पर चुप रहने के लिए 
अव्यक्त वचन बद्ध रहते हैं !
यह तथ्य , अभी अभी बाबा रामदेव के सहयोगी 
आचार्य बालकृष्ण के सम्बन्ध में 
सरकारी प्रवक्ता दिग्विजय के खुलासे से प्रमाणित हो गया है ! 
किसी भी विरोध को दबाने सरकार ,
विरोधी के आपराधिक प्रकरणों पर स्वतः ही पर्दा डाले रखकर ,
सौदेबाजी करती है , सौदा पटा तो ठीक नहीं तो जांच बैठा दी !
अब बाबा के सारे व्यापार व्यवसाय की भी सक्षम एजेंसियों से 
 जांच करवाई जा रही है , क्यों ?
बाबा के अनशन के बाद से ही सरकारी तंत्र को 
बाबा के व्यवसाय का बढ़ता आकार अनियमित लगने लगा ?
यदि कोई अनियमितता मिलती है तो सरकारी तंत्र की मिलीभगत 
और अक्षमता और भी अधिक उजागर हो जायेगी !
ना केवल बाबा के प्रकरण में वरन देश में संचालित 
सभी लायसेंस प्राप्त व्यवसायों की जांच कर देख ली जाए ,
कम से कम ८०% व्यवसाय प्राप्त किये गए लायसेंस की शर्तों 
के अनुपालन में अक्षम मिलेंगे !
किन्तु सरकारी तंत्र चुप रहेगा जब तक कि
ऐसे व्यवसाईयों से सरकारी तंत्र का हित 
किसी ना किसी रूप में सधता रहे !
फिर चाहे ऐसा हित साधन 
नियमित निरंतर प्राप्त हो रहे नकद के रूप में हो
[ जो अधिकारी स्तर के निचले माध्यम से ऊपरी स्तर तक बँटता है ] 
या किसी भी अन्य रूप में !
बाबा के अनशन के बाद शुरू हुई सरकारी जांचों ने 
सिद्ध कर दिया है कि 
सरकार विपक्ष से सौदेबाजी करती रहती है !
दोनों पक्ष एकदूसरे को भरपूर ब्लैकमेल करते रहते हैं !
सौदे एकदूसरे के काले कारनामों पर चुप्पी साधे रखने के होते हैं !
ऐसा लगता है कि देश को लूटने में रत 
सत्ताधारी राजनैतिक दल का आधार वाक्य हो 
"हम भी चुप गर तुम रहो चुप "
"मिलकर खाएं हमतुम गुपचुप " 

मंगलवार, 7 जून 2011

INVITATION !

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
Baba been beaten Anna been cheated !
We Indians being Exploited !
Then too keeping quite !
Is flooding water in our veins ?
If Blood ? should boil !!!
If Indian ? should Join !
http://www.swasasan.in/

रविवार, 5 जून 2011

ये ठीक नहीं हुआ माननीय

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....

 माननीय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी ,
जय हिंद !
बीते सप्ताह की तमाम घटनाओं के आप मूक दर्शक मात्र बने रहे ...
ये ठीक नहीं हुआ माननीय !
आपकी सरकार को, बाबा रामदेव २-३ दिन पहले ना बताते,
तो पता ही नहीं था की काले धन के साथ क्या किया जाना चाहिए !
ये ठीक नहीं हुआ माननीय !
भला हो बाबा रामदेव का की उन्होंने आपको २ दिन पहले 
काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने का फार्मूला आपको बताया 
और आपके योग्य मंत्रिमंडल ने मात्र २ दिन के विचार विमर्श के बाद 
इस निर्णय पर अमल हेतु समिति बनाने की तैयारी शुरू कर बाबा को सूचित कर दिया !
भला २ दिन पहले सुझाये आइडिया पर इतनी जल्दी अध्यादेश कैसे लाया जा सकता था !!!
बाकी के दो आइडिया भी कमाल के थे बाबा के !
वो भी २ दिन के भीतर मानने योग्य थे तभी तो आपकी सरकार 
भ्रष्ट को उम्रकैद तक देने तक और 
भारतीय भाषाओँ के विकास एवं प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु भी तैयार हो गई  !
काश ! बाबा जैसे आइडियाज के धनी कुछ मंत्री भी आपके मंत्रिमंडल में होते !
अथवा 

My Contribution to The Nation !!!

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
My Contribution to The Nation !!!
 Frieds ; Jai Hind !
Every one of us having multiple complains of unfair happenings in our nation 
  but
what are We in our own ?
Are we fair ?

or 

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