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गुरुवार, 9 जून 2011

हम भी चुप गर तुम रहो चुप

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
हमारे देश का दुर्भाग्य है कि
सत्ताधीश और विपक्ष दोनों 
चोर चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर 
आपस में दुसरे की  चोरी पर चुप रहने के लिए 
अव्यक्त वचन बद्ध रहते हैं !
यह तथ्य , अभी अभी बाबा रामदेव के सहयोगी 
आचार्य बालकृष्ण के सम्बन्ध में 
सरकारी प्रवक्ता दिग्विजय के खुलासे से प्रमाणित हो गया है ! 
किसी भी विरोध को दबाने सरकार ,
विरोधी के आपराधिक प्रकरणों पर स्वतः ही पर्दा डाले रखकर ,
सौदेबाजी करती है , सौदा पटा तो ठीक नहीं तो जांच बैठा दी !
अब बाबा के सारे व्यापार व्यवसाय की भी सक्षम एजेंसियों से 
 जांच करवाई जा रही है , क्यों ?
बाबा के अनशन के बाद से ही सरकारी तंत्र को 
बाबा के व्यवसाय का बढ़ता आकार अनियमित लगने लगा ?
यदि कोई अनियमितता मिलती है तो सरकारी तंत्र की मिलीभगत 
और अक्षमता और भी अधिक उजागर हो जायेगी !
ना केवल बाबा के प्रकरण में वरन देश में संचालित 
सभी लायसेंस प्राप्त व्यवसायों की जांच कर देख ली जाए ,
कम से कम ८०% व्यवसाय प्राप्त किये गए लायसेंस की शर्तों 
के अनुपालन में अक्षम मिलेंगे !
किन्तु सरकारी तंत्र चुप रहेगा जब तक कि
ऐसे व्यवसाईयों से सरकारी तंत्र का हित 
किसी ना किसी रूप में सधता रहे !
फिर चाहे ऐसा हित साधन 
नियमित निरंतर प्राप्त हो रहे नकद के रूप में हो
[ जो अधिकारी स्तर के निचले माध्यम से ऊपरी स्तर तक बँटता है ] 
या किसी भी अन्य रूप में !
बाबा के अनशन के बाद शुरू हुई सरकारी जांचों ने 
सिद्ध कर दिया है कि 
सरकार विपक्ष से सौदेबाजी करती रहती है !
दोनों पक्ष एकदूसरे को भरपूर ब्लैकमेल करते रहते हैं !
सौदे एकदूसरे के काले कारनामों पर चुप्पी साधे रखने के होते हैं !
ऐसा लगता है कि देश को लूटने में रत 
सत्ताधारी राजनैतिक दल का आधार वाक्य हो 
"हम भी चुप गर तुम रहो चुप "
"मिलकर खाएं हमतुम गुपचुप " 

 

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