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बर्दाश्त
नाकामयाब इश्क का, इक ये भी असर हुआ
नाकामयाब इश्क का, इक ये भी असर हुआ
दुनियां के बड़े आशिकों में, नाम अपना भी शुमार है!
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मेरे दर्द से तू गाफिल हो, बर्दाश्त से बाहर था
अच्छा हुआ खतावार मेरे, दर्दीले अहसास ही निकले!
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मेरे दर्द से बेखबरी तेरी, हो ही नहीं सकती थी
इसीलिए अहसासों को ही, सूली टाँग दिया हमने!
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मेरी जहीनियत के रास्ते, पीर, तेरे मुकाम तक पहुँचे होंगे
बेवजह इल्म भला, किसे हासिल हुआ है अब तक!
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पहले-पहल का दर्द, हमें भी, बहुत सताया किया
अब दर्द के सितारों से मेरा, दामन रोशन हुआ करता है!
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इश्क हर किसी को हो, सब आशिकी करें
कामयाब इश्क होगा या कामयाब शख़्सियत!
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..... अपेक्षित हैं समालोचना / आलोचना के चन्द शब्द...
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