स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् ...
जारी है ... 100 साल बाद भी
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मैं 'नरेन्द्र' की आत्मा
आज यहाँ से, स्वर्ग से, पूर्ण पूर्वाग्रह रहित होकर देख पा रहा हूँ ...
मैं 'नरेन्द्र' की आत्मा
आज यहाँ से, स्वर्ग से, पूर्ण पूर्वाग्रह रहित होकर देख पा रहा हूँ ...
भारत! जो मेरा भारत हुआ करता था
आज भी लगभग वहीं है ...
जहाँ मैंने छोड़ा था!!!
आज भी मेरे भारत वंशी वैसे ही भोले, सरल और सहज हैं
जैसे आज से 100 साल पहले थे!
100 साल पहले जब मुझे 'विश्व धर्म संसद' में
भारत का प्रतिनिधित्व करने का
ऐतिहासिक अवसर मिलना शेष था....
ऐतिहासिक अवसर मिलना शेष था....
तब मेरे 'भारत' के लिए
अंग्रेज ही 'साहब' हुआ करते थे।
अंग्रेजों की अंग्रेजी में बारंबार दी जाने वाली गालियों
(निकृष्ट, गँवार और दो-दो पैसे में बिकने वाला) को
भारत ना केवल अंगीकार कर चुका था, बल्कि नियति भी मान चुका था।
उनके लिए केवल अँग्रेज़ और अंग्रेजी जानने / बोलने वाले ही