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गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

क्या सही और क्या गलत

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर एवम् ....
हम सभी निर्देशों से संस्कारित होकर समझदार होते हैं!
मजेदार बात यह है कि इनमें से अधिकांश निषेधात्मक निर्देश होते हैं!
जिनमें प्रमुख है 
ऐसे मत '.....' करो
रिक्त स्थान में शब्द वाक्यांश भरते जाइये 
ऐसे मत 'बैठा' करो
ऐसे मत 'चला' करो
ऐसे मत 'बोला' करो
ऐसे मत 'लेटा' करो
ऐसे मत 'सोचा' करो
आदि-इत्यादि....
जब हम स्वयं विवेकवान हो चुके होते हैं
(या जब हमें विवेकवान होने का हमें जब भ्रम होना प्रारंभ ही होता है)
तब हम पाते हैं कि सभी निषेध उचित या उपयोगी या सार्थक नहीं हैं!
किंतु इसके बाद भी अनेक निरर्थक निषेधों की ओर जनसामान्य का ध्यान नहीं पहुँच पाता
और वे जीवनपर्यंत से निषेधों का पालन कर अपनी प्रगति के मार्ग में स्वयं ही अवरोधक हो रहे होते हैं!
यह श्रंखला ऐसे ही निरर्थक निषेधों से उबरने के ध्यानाकर्षण हेतु प्रस्तुत है!
इसके अगले अंक में हम चर्चा करेंगे 'सड़क पर पैदल चलने का ढंग'  पर!
बेतुका लगा ना
कि इसमें कौनसी खास बात है ???
अगले अंक में देखियेगा जरूर
कितनी विशेष बात है!!!
..... अपेक्षित हैं समालोचना / आलोचना के चन्द शब्द...

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