www.blogvarta.com

फ़ॉलोअर

रविवार, 15 नवंबर 2015

https://www.youtube.com/watch?v=XwK2upIvRU0


https://www.youtube.com/watch?v=XwK2upIvRU0
स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

बुधवार, 11 नवंबर 2015

SwaSaSan: -: आओ हम दीप जलायें :-

SwaSaSan: -: आओ हम दीप जलायें :-: स्वागत् है आपका SwaSaSan पर...   -: आओ -: आओ हम दीप जलायें :- . आई है  फिर दीपमालिका  आओ हम दीप जलायें ! अधम पर दिव्य के विजय...

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

-: आओ हम दीप जलायें :-

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर...
 
.
आई है  फिर दीपमालिका 
आओ हम दीप जलायें !
अधम पर दिव्य के विजयोत्सव पर 
सब मिल दीप जलायें !
.
किसी क्षुधित व्याकुल निर्धन के 
भोजन का कुछ प्रबंध करें 
फिर छप्पन व्यंजन भोग से पहले 
आओ हम दीप जलायें !
.
किसी दरिद्र दुखी अधनंगे के 
तन ढंकने का यत्न करें 
फिर नूतन धवल परिधान पहन 
आओ हम दीप जलायें !
.
संतप्त स्वजन परिजन पीड़ा से 
परजन  को भी ध्यान धरें 
फिर कर्णभेदी आतिश के संग 
आओ हम दीप जलायें !
.
.....एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द!

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

पराये धर्म के अपने और मेरे अपने धर्म के पराये....?

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

पराये धर्म के अपने और मेरे अपने धर्म के पराये....?


 मेरे अपने तो मेरे दिल में बसा करते हैं
फिर अपनों के अपने दूर कैसे रहते?
मेरे अपनों में परिजन से प्रिय हुए
मेरे - कुल, जाति, धर्म, घर, मोहल्ले, शहर, प्रांत, देश...
और पूरी दुनियां के लोग
मैं विस्तृत हुआ धीरे-धीरे
मैं से 'हम-दोनों' में
फिर 'हम-चार' से 400 में, 4,00,000 में
फिर बढ़ते-बढ़ते
कुछ करोड़ मेरे धर्म के
दुनियां भर में फैले हुए लोगों तक
विस्तृत हुआ मैं
गैरों से अपनों के हक की लड़ाई मेरा मकसद बना
एक बार
मेरे अपनों की सीखों पर
एक गैर से वाद-विवाद हुआ
उसने पूछा कि -
क्या तुम्हारे लोग तुम्हारे अपनों की
सीखों पर ही चलते आये हैं ?
क्या कंस, रावण, हिरणाकुश तुम में से एक ना थे?
क्या रावणों, दुर्योधनों के ज्ञात-अज्ञात कुलवंशज
तुम्हारे बीच नहीं हैं आज ?
या खुद तू जो इतना बलबला रहा है
इनमें से किसी का खून नहीं कैसे कह सकता है?
मैं मौन हो सिर झुकाये सुनता रहा....
मन ही मन गुनता रहा ...
मेरे रावण, कंस, दुर्योधनों से
बहुत ऊपर हैं
महान हैं
वे गैर जिन्हें जाना नहीं अबतक मैंने!!!
अब लगता कल तक
मैं
शायद अखिल ब्रम्हांड में
व्याप्त हो जाउंगा
सबमें स्वयं को
और स्वयं में सबको पाउंगा.....
‪#‎सत्यार्चन‬

बुधवार, 8 जुलाई 2015

मेरे दोस्त.....

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...
मेरे दोस्त.....
जी चाहता है
मिल जाओ तुम
यकायक कहीं मेले में
लिपट जाओ आकर मुझसे
फिर सोचता हूँ...
ना हो ऐसा कभी
जीवन भर....
तेरे-मेरे पवित्र रिश्ते की
समझ कहां है दुनियां वालों में भला!
तुझसे मिलना मेरी चाहत तो है पर
तेरी खुशहाली को आँच आये ना कहीं....
ना आये कभी तू फिरसे 
यही दुआ है मेरी
रब से दिल से!!!
-चर्चित

गुरुवार, 18 जून 2015

तमीज

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...
तमीज
सीखना तो पड़ता है
चाहे
माँ के दुलार से
या
पिता की दुत्कार से
या
गुरु की फटकार से
या
दोस्तों की गालियों की बौछार से
प्रियतम की मनुहार से
 या
बीबी/ बास के तिरस्कार से
या
पुलिस की मार से
या
इन सबके मिले जुले संसार से
मगर
सीखना तो होगा ही
-सत्यार्चन

रविवार, 31 मई 2015

Truer Times



स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

Truer Times



स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

Truer Times



स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

मंगलवार, 19 मई 2015

शनिवार, 9 मई 2015

विकास चाहिए या विनाश?


प्रकृति की सर्वोत्तम कृति था इन्सान!
प्रकृति की गोद में पलते हुए धीरे-धीरे विकसित होते-होते
प्रकृति प्रदत्त प्रज्ञान के अभिमान से 
प्रकृति से ही प्रतिद्वंदिता करने लगा!!!
प्रकृति का निर्विवाद सर्व-स्वीकार्य तथ्य है कि-
प्रकृति ने एक साथ स्त्री और पुरुष दोनों को रचा 
इस विचार के साथ कि दोनों मिलकर ही सार्थक हैं, सम्पूर्ण हैं....
पृथक-पृथक निरर्थक!
एक दूसरे के विरुद्ध होकर केवल विनष्ट...
हर विवेकी "व्यक्ति" को अपने-अपने विवेक से विचारना ही चाहिये कि
हमें विकासोन्मुख होना है या विनासोन्मुख!
.                                              -सत्यार्चन

रविवार, 6 जुलाई 2014

रौशन सवेरा: युवा शक्ति

रौशन सवेरा: युवा शक्ति: स्वामी विवेकानंद जी इस संसार के वो नक्षत्र हैं जिसकी चमक भारतीय संस्कृति में आज भी विद्यमान है। साहस निर्भयता और ज्ञान के अपार सागर स...

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

सोमवार, 30 जून 2014

U & I (Rishte Naate) De Dana Dan.wmv



Don't know.... I'm Sharing With
 or ....
had been Shared With me....!
Title is different then the Theme !!!
Why should I or You
have to break any thing ....
Any relation....
Till ''The day you know
I never wish any thing
from you rather then meetings ....
we never even intended to touch each other  ....
n never would be....
Then why should
You or I
must break any ..... !
We together will create
a new Path of Friendship
A Never Ending friendship....
Everlasting in all circumstances!!!!





स्वागत् है आपका SwaSaSan पर... एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

चर्चित सुख के साधन

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर...
........

(पुनः प्रकाशित)

मेरा ही नहीं, श्रीमद्भागवद्गीता, पाक कुरान ,द ग्रेट बाइबल , गुरु ग्रन्थ साहिब आदि धर्म ग्रंथों सहित

कई अन्य विद्वानों का सन्देश है

जिसे मैंने मेरे जीवन में उतारकर 

जीवन सरल व सुखी बनाने में सफलता पाई है ...

----

सारे रिश्तों, नातों, मित्रों आदि के प्रति

कुछ भी करते समय

एक भाव जन्मता है कि मैं इसके हित साधन में सहायक हूँ

फिर अगले ही पल एक आस जगती है कि

इसे लगना चाहिए ,

इसे मानना चाहिए कि  

ऐसा मैं कर रहा / रही हूँ

मेरी आवश्यकता पर

इसे भी ऐसा ही करना चाहिए ....

आदि.... आदि....

यही वे प्रतिफल की इच्छाएं हैं जो 

दुःख / कष्ट का कारण हैं .

हम किसी के भी प्रति

{स्वयं अपने प्रति भी }

कुछ भी करते हुए

यदि यह भाव रखें कि 

मैं ऐसा इसीलिये कर रहा/ रही  हूँ  कि

मुझे ऐसा करने की ईश्वरीय प्रेरणा मिली है

या मेरे विवेक अनुसार इस समय

ऐसा ही किया जाना उचित है

मैं केवल सद्भाव से

अपना कर्त्तव्य कर रहा /रही हूँ

जरुरी नहीं कि इसका

सबसे अच्छा /अच्छा

ही परिणाम आये

हो सकता है

इससे भी अच्छा कुछ हो सकता था

हो सकता है

इसका परिणाम अच्छे के स्थान पर बुरा हो 

 किन्तु

मेरे विवेक अनुसार

मैंने अच्छे के लिए ही ऐसा किया

यदि इससे  बुरा भी हो

तो

मुझे आहत नहीं होना है

अच्छा हो

तो

इस बात के लिए

घमंड ना कर 

 आनंदित होना है

कि

मुझे ऐसा अच्छा कार्य करने का

ईश्वर ने अवसर दिया

जिसके प्रति मैंने किया

उसके लिए तो ऐसा होना ही था

यदि मैं ना करता / करती

तो भी

उसके साथ ऐसा होना 

{अच्छा /बुरा }

पूर्वनिर्धारित था .

बस

यही निष्काम कर्म है

यही है

नेकी कर दरिया में डाल

जब इस तरह का भाव

जागृत होना संभव हो जाता है

तब कुछ नए अनुभव होते हैं

केवल सुख के अनुभव

थोडा और विचार कीजिये 

आप उनके लिए दुखी हो लेते हैं

जिनके लिए आपने बहुत कुछ किया 

लेकिन वो आपके लिए

बहुत कुछ / कुछ भी नहीं कर पाए

.

अब एक और बात सोचिये

उन लोगों के बिषय में सोचिये

जिन्होंने आपके लिए

बहुत कुछ/ कुछ  भी अच्छा किया

शायद तुरंत बहुत कम लोग याद आयें

किन्तु

थोडा जोर डालने पर

थोड़े बहुत लोग याद आ ही जायेंगे

[ये तुरंत याद इसीलिये नहीं  आ पाते 

क्योंकि यह हमारा सामान्य

मानव स्वाभाव है.

हम हमारे प्रति किसी के कुछ किये को

अधिक किया नहीं मानते .

यही उनके साथ भी होता है

जिनके लिए हमने कुछ किया,

जो हमारे लिए महान लगता है 

लेकिन उसकी नजरों में

उतना महत्वपूर्ण नहीं होता ]

जो लोग आपके ही अनुसार आपके लिए

कुछ हित संवर्धन का कारण बने

उनमें से कितनों के लिए

प्रतिफल में आप कुछ कर पाए .

कई ऐसे लोग आपकी लिस्ट में मिल जायेंगे

जिनके लिए अच्छे के प्रतिफल में

आप उतना / कुछ भी

  अच्छा नहीं कर पाए होंगे / होंगी.

यहाँ तक कि कईयों को तो

आप कृतज्ञता तक

प्रकट नहीं कर पाए होंगे /होंगी .

यही तथ्य उस समय भी

ध्यान में रखना  चाहिए जब

हम दूसरी ओर हों .

जिस तरह आप उनके लिए

कुछ खास नहीं कर पाए

जिन्होंने आपके लिए किया

उसी तरह वो भी

आपके लिए नहीं कर पाये होंगे!

जिनके लिए आपने कुछ खास किया !

किन्तु यह "अच्छा " होना निरंतर जारी है .

जरुरी नहीं प्रतिफल में

वह व्यक्ति ही कुछ करे

जिसके लिए आपने कुछ किया. 

"प्रतिफल में कहीं कोई और

आपके लिए शुभ कर रहा होगा"

जैसे

अनचाही बरसात में  जब आप

हाथ में छतरी लेकर चलते हैं

तब बरसात से आपको

पूरी छतरी मिलकर ही बचाती है

जबकि आपके सीधे सम्पर्क में

छतरी की केवल डंडी होती है.

आपका पूरा ध्यान पूरी पकड़ डंडी पर ही होती है

बरसात से बचाने वाले परदे की ओर

आप देख भी नहीं रहे होते हैं!

ऐसे ही जीवन यात्रा है

जिसमें दुःख / दर्द की बारिस हो रही है....

और आपके हाथ में

आपके " संचित " *** सद्कर्मों की छतरी है.

कभी यह बरसात सुहानी लगती है

कभी साधारण

कभी मुसलाधार बारिस के साथ

आँधी भी चल रही होती है

तब हमारे हांथों में पकड़ी हुई

मजबूत से मजबूत छतरी भी

हमें भीगने से बचा नहीं पाती

यह बरसात

कभी कम होती है तो कभी ज्यादह

कभी क्षणिक तो कभी लम्बे समय के लिए ....

.......यही प्रकृति है.



*** संचित कर्मों से मेरा आशय आपके होश सँभालने से लेकर

अभी तक के आपके कार्यों

के अतिरिक्त

आपके पूर्वजन्मों के {यदि पूर्व जन्म में विश्वास हो },

पूर्वजों के (क्योंकि जन्म से स्वावलम्बन् तक

आप पूर्वजों के अर्जित का ही उपभोग कर रहे होते हैं!),

 कुल के / परिजनों (परिजन का अर्थ अलग-अलग शरीरों में

एक ही व्यक्ति के होने सा है/होना चाहिये! ) के कर्मों का निष्कर्ष है .

 अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

-'चर्चित चित्रांश'
 

रविवार, 24 नवंबर 2013

SwaSaSan: एक खुली चिट्ठी अन्ना जी, किरण जी के नाम....

SwaSaSan: एक खुली चिट्ठी अन्ना जी, किरण जी के नाम....: स्वागत् है आपका SwaSaSan पर एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द... एक खुली चिट्ठी अन्ना जी , किरण जी के नाम....   ... स्वागत् है आपका SwaSaSan पर एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

एक खुली चिट्ठी अन्ना जी, किरण जी के नाम....

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...


 

 

आदरणीय अन्नाजी,

सादर प्रणाम!

 सार्वजनिक मंच पर खुला पत्र लिखने हेतु अग्रिम क्षमा प्रार्थना!

(वैसे भी आपके और आपको प्रेषित पत्र आगे जाकर सार्वजनिक होते हैं)

अरविंद जी से आपकी नाराजी क्या वास्तव में केवल हिसाब किताब की ही है?

 यदि हाँ और आपके पास कोई ठोस प्रमाण हों तो

कृपया शीघ्रातिशीघ्र सार्वजनिक करवाइयेगा ताकि

हमारी भोली-भाली जनता अरविंद जी के बहकावे में आकर

अपना अहित ना करा बैठे

अन्यथा कम से कम इस समय,

जब उनको उनकी सम्पूर्ण ऊर्जा की आवश्यकता दूसरे मोर्चे पर है!

ऐसे समय में कट्टर दुश्मन के अतिरिक्त और किसी से भी

नया विवाद उठाना नैतिकता के विरुद्ध है!

(और शायद भाई अरविंद अब तक तो आपके दुश्मन नहीं ही हैं....)

किन्तु अन्नाजी ऐसा लगता नहीं

कि आपकी मूल नाराजगी हिसाब संबंधी है....

वरन् आपकी राजनीति से दूरी की विचारधारा के

के पालन ना कर पाने और अपने पूर्व सहयोगियों से ना करा पाने

के कारण आप अधिक नाराज लगते हैं?

आप और किरणजी दोनों राजनीति को अस्पृश्य मानते हैं!!!

आपमें इस भावना के बलवान होने का कारण भी समझ आता है

कि

आपका समर्पण महात्मा गाँधी एवम् उनके हत्यारों की

दोनों ही संस्थाओं से रहा है;

दोनों  राजनीति से तथाकथित दूर!

किन्तु दोनों ही मुख्य एवम् कुशल (नेपथ्य) संचालक !

दोनों ही उच्च आदर्शों के वाहक

दोनों का ही निषेध राजनीतिक पद से

पद से होने हो सकने वाले लाभ से!

उनके लिए राजनीति दूषित हो त्याज्य नहीं

वरन् उपभोग बिना दोष निवारण योग्य!

यही महात्मा गाँधी एवम् ऱा. स्व. सन्. दोनों के प्रयास!!!

यही आचार्य चाणक्य का भी उद्देश्य था!

यदि राजनीति स्वतः निकृष्ट होती

तो इतिहास के सभी राजनीतिज्ञ निकृष्टतम ही माने जाते!!!

हम आज

इंद्र, राम, कृष्ण, भीष्म, गौतम, महावीर, नानक, गोविंद आदि

को आदर्श मान ना पूज रहे होते!!!

रही बात अरविंद जी की सक्रिय राजनीति में उतरने की

तो

अन्नाजी; किरणजी आपके अतिरिक्त भी

समस्त राजनीति परित्यक्त जनों से भी

सादर प्रश्न है कि

भारतीय राजनीतिक सरोवर की देखभाल

के अब तक के ठेकेदारों में से प्रत्येक ने

ठेका लेते समय जिन शर्तों के वादों पर हस्ताक्षर किए,

उनके पालन से सरोकार ही ना रखा...

हर ठेकेदार केवल स्वयम् की अगली पीढ़ियों तक के लिये जोड़ने की

हेराफेरी में लगा रहा....

65 साल बीत चुके हैं आजमाते हुये...

और कितने ठेकेदारों को आजमायें???

शायद अब वह समय आ पहुँचा है जब

यदि

हम उन पूर्व राजनीतिक ठेकेदारों से

नीति कुशल नहीं भी हैं तो भी

हमारे पास

उस पवित्र सरोवर की देखरेख के

अधिकार पाने की गला काट प्रतिस्पर्धा में

स्वयं को  और स्वजनों को

झोंकने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं!

यह जानते हुए कि आज

यह प्रतिस्पर्धा समर का रूप ले चुकी है....

इसमें उतरकर हम

आहत भी हो सकते हैं और हत् भी,

लांछित भी और लांछन सिद्ध भी,

आरोपी भी और अपराधी प्रमाणित भी!!!

इस सामरिक प्रतिस्पर्धा में

कभी राम का तो कभी कृष्ण का

कभी चाणक्य का कभी गौतम का

कभी गाँधी का कभी भगत सिंह का

मार्ग अनुसरण करना ही होगा!

परिणाम की चिंता किये बिना!

-चर्चित चित्रांश-


शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

SwaSaSan: -:- सुनो> गुनो> चुनो> बुनो> बनो -:-

SwaSaSan: -:- सुनो> गुनो> चुनो> बुनो> बनो -:-: स्वागत् है आपका SwaSaSan पर एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...  -:- सुनो~> गुनो~> चुनो~> बुनो~> बढ़ो~>बन... स्वागत् है आपका SwaSaSan पर एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...

बुधवार, 20 नवंबर 2013

-:- सुनो> गुनो> चुनो> बुनो> बनो -:-

स्वागत् है आपका SwaSaSan पर एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...


-:- सुनो~> गुनो~> चुनो~> बुनो~> बढ़ो~>बनो -:-

सफलतम् व्यक्तियों ने भी
 अपने जीवन का कुछ ना कुछ भाग
व्यर्थ के कामों अवश्य गंवाया होता है....
(आपने... बस उनसे थोड़ा सा अधिक....)
फिर भी वे सफलतम में गिने गये!
विश्वास रखिये
आप उनसे भिन्न नहीं हैं!
सफल होना
सफलता के नये नये शिखरों को चूमना
इस पर निर्भर करेगा कि
आप कब जागे
जागने का एक तरीका यह भी है कि
आपको जगाने के लिये
आती हुई हर आवाज को सुना जाये
ध्यान से सुना जाये
जो सुना गया है
उसपर पूरे मन से
पूर्ण निष्पक्षता से
विचारा जाये
गुना जाये
गुनकर उपयुक्त अनुपयुक्त
का निर्धारण कर
उपयुक्त को चुना जाये
जो चुना है
उसपर चलने से पहले
बिभिन्न विकल्पों को विचारा जाये
श्रेष्ठतम विकल्प को योजनाबद्ध किया जाये
बुना जाये
फिर सधे हुये कदमों से
सफलता के पथ पर
बढ़ जाया जाये
बन जायें जो चाहें....
बहत आसान है
बस सुनने की आदत डालनी होगी
छोटी बड़ी आवाजों को.....



Translate