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साँस दर साँस
लम्हा दर लम्हा
दो जिस्म एक जान
की तरह जीते-जीते
एक दिन अहसास हुआ
भ्रम है यह!
जिस्मों की ही तरह
जानें ही अलग ना थीं
जुदा तेरे ख्वाब भी थे !
फिर भी हमारी लाचारी
अपनी उम्र सारी
तेरे ख्वाबों की ताबीर हम तराशा किये!
तेरे हर सुनहरे ख्वाब में,
खुद का पैबंद