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भ्रष्ट / ठग कौन नहीं who is not corrupt ?
भ्रष्टाचार पर भाषण देना लगभग हर किसी को पसंद है . किन्तु भ्रष्टाचार की जड़ खुद हम ही हैं .
कैसे ????
कल मध्यप्रदेश के अधिकांश अखवारों में एक कृषि विस्तार अधिकारी, गुप्ताजी, को किसी बिहारी युवक द्वारा ठगे जाने की खबर प्रमुखता से छपी. बिहारी युवक ने अधिकारी की पुत्री को मेडिकल कॉलेज में सीट दिलाने के नाम पर ७ लाख रुपये लिए किन्तु पुत्री के पी एम् टी में पास ना होने पर अधिकारी महोदय को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ी.
धन्य हैं हमारी प्रशाशनिक व्यवस्थाएं ! गुप्ताजी की शिकायत सुनी भी गई और प्रिंट मीडिया ने श्री गुप्ताजी की
व्यथा को बड़ी सहानभूति पूर्वक छपा भी. किसी अखवार ने यह प्रश्न उठाने के बिषय में सोचा भी नहीं की गुप्ताजी क्या वास्तव में सहानुभूति के पात्र हैं ? गुप्ताजी का रिश्वत खिलाकर भी काम ना निकलने से मात्र ७ लाख का ही नुकसान हुआ है किन्तु यदि काम हो जाता तो कम से कम एक प्रतिभावान परीक्षार्थी का भविष्य अंधकारमय हो ही गया होता .ऐसे ना जाने कितने गुप्ताजी अपने मंतव्य में सालों साल से हर साल सफल होते रहे होंगे और जाने कितने प्रतिभावान योग्य प्रतियोगियों का हक़ छिनता रहा होगा और ना जाने कब तक छिनता रहेगा .
इस ओर भी किसी का ध्यान जाएगा क्या या सच्चों का हक़ रिश्वत में बेचकर लाखों इकट्ठे करने वाले "गुप्ताओं" द्वारा हकदारों का हक़ खरीदा जाता रहेगा ?
भ्रष्ट / ठग कौन नहीं who is not corrupt ?
भ्रष्टाचार पर भाषण देना लगभग हर किसी को पसंद है . किन्तु भ्रष्टाचार की जड़ खुद हम ही हैं .
कैसे ????
कल मध्यप्रदेश के अधिकांश अखवारों में एक कृषि विस्तार अधिकारी, गुप्ताजी, को किसी बिहारी युवक द्वारा ठगे जाने की खबर प्रमुखता से छपी. बिहारी युवक ने अधिकारी की पुत्री को मेडिकल कॉलेज में सीट दिलाने के नाम पर ७ लाख रुपये लिए किन्तु पुत्री के पी एम् टी में पास ना होने पर अधिकारी महोदय को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ी.
धन्य हैं हमारी प्रशाशनिक व्यवस्थाएं ! गुप्ताजी की शिकायत सुनी भी गई और प्रिंट मीडिया ने श्री गुप्ताजी की
व्यथा को बड़ी सहानभूति पूर्वक छपा भी. किसी अखवार ने यह प्रश्न उठाने के बिषय में सोचा भी नहीं की गुप्ताजी क्या वास्तव में सहानुभूति के पात्र हैं ? गुप्ताजी का रिश्वत खिलाकर भी काम ना निकलने से मात्र ७ लाख का ही नुकसान हुआ है किन्तु यदि काम हो जाता तो कम से कम एक प्रतिभावान परीक्षार्थी का भविष्य अंधकारमय हो ही गया होता .ऐसे ना जाने कितने गुप्ताजी अपने मंतव्य में सालों साल से हर साल सफल होते रहे होंगे और जाने कितने प्रतिभावान योग्य प्रतियोगियों का हक़ छिनता रहा होगा और ना जाने कब तक छिनता रहेगा .
इस ओर भी किसी का ध्यान जाएगा क्या या सच्चों का हक़ रिश्वत में बेचकर लाखों इकट्ठे करने वाले "गुप्ताओं" द्वारा हकदारों का हक़ खरीदा जाता रहेगा ?
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