आश्चर्य है अन्नाजी सरकार की एक और चाल में फंसकर खुश हो रहे हैं !
वह भी केजरीवाल जी और किरणजी जैसे सहयोगियों के होते हुए !
विगत ४ अप्रैल को भी अन्नाजी के अनशन समापन वाले दिन मैंने नीचे प्रदर्शित लेख लिखा था जो अक्षरसः सामने आ रहा है उसी तरह आज फिर लिख रहा हूँ ! अन्नाजी खुश होने लायक सरकार कुछ नहीं करने जा रही है वरन मेरे पिछले लेख के अनुसार ही सरकार की अगली चाल है यह जिसपर आप वेवजह प्रसन्न हो रहे हैं !
सरकार ने सभी राजनैतिक दलों और राज्यों के मुख्मंत्रियों की बिल पर रायशुमारी की मंशा एक सोची समझी साजिश के तहत जाहिर की है !
भारतीय राजनैतिक इतिहास गवाह है ना किसी भी विपक्ष ने कभी सात्ताधारी दल के [ सरकारी ] और ना ही सरकार ने विपक्ष के [गैरसरकारी ] किसी भी उपयोगी से उपयोगी बिल को, बिना अनावश्यक बहस या बिना मनमाने गैरजरूरी संशोधनों का दबाव बनाए, कभी पारित करवाने में रूचि दिखाई तो आज इतने महत्वपूर्ण बिल जिसपर कई राजनीतिज्ञों का भविष्य ही दांव पर लगने वाला हो को ऐसे ही छोड़ देंगे !
पिछले ४२ सालों से भी इन्हीं राजनैतिक दलों के झूठे / सच्चे विरोध / संशोधन प्रस्तावों के चलते लोकपाल बिल अटका रहा है तो अभी भी कम से कम ७-८ साल अटकाने का प्रबंध तो सरकार ने कर ही लिया है !
और भी मजे की बात यह कि मुद्दे को उठाने वाले अग्रणी नेता अन्नाजी की ख़ुशी ख़ुशी हामी भी भरवा ली !
अन्नाजी काश मुझे भी आपके सलाहकार मंडल में शामिल किया होता !
मैं आप जैसा नामी गिरामी नेता तो नहीं किन्तु विगत २१ सालों से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यरत हूँ ,और एक एक दुह राजनैतिक चाल को बारीकी से देखते देखते अगले २१ सालों की इनकी रणनीती आज ही देख पाने में सक्षम हो गया हूँ !
अन्नाजी के अनशन और केजरीवाल जी ,किरण जी के प्रयासों से सरकार झुकी हुई प्रतीत हो रही है किन्तु यह पूरी तरह सच नहीं है .
यदि माननीय मनमोहन जी जैसे नेताओं के हाथ में होता तो लोकपाल बिल ४२ वर्षों तक इन्तजार ना कर रहा होता .
कांग्रेस में ही नहीं देश के राजनैतिक इतिहास में मनमोहन जी , अटल जी , राजीव जी ,आडवानी जी जैसे नेता गिने चुने ही हुए हैं. सब के सब सत्ता के भागीदारों से सहयोग के बदले उनके अनैतिक की अनदेखी करने विवश!