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मेरे अपनों के आराध्य और मेरे प्रिय
सभी सामाजिक संगठन, उनके बहुत बड़े हितसाधक हो सकते थे, जिनका ये प्रतिनिधित्व करते हैं!
किन्तु: सभी में कुछ बुराईयां समान रूप से विद्यमान हैं कि
- सभी के मूल में प्रत्यक्ष या परोक्ष राजनैतिक लक्ष्य हैं.
- सभी हिंसक गतिविधियों के पक्षधर हैं, कुछेक के लिए तो बात मनवाने का आयसिस सा तरीका ही सबसे आदर्श है!
- सभी संगठनों के मुखियों को, उनके परिजनों से इतर, बलिदानी कार्यकर्ताओं की दरकार है!
- सभी जुनूनी आग को बुझने नहीं देना चाहते!
- सभी की सौहार्द्र से कट्टर दुश्मनी है!
- सौहार्द्र के संदेशकों का गला काटने सभी तत्पर हैं!
- सभी को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है!
इन जैसे अधिकांश संगठनों का गठन शोषण के विरुद्ध आक्रोश की बारूद के फटने जैसा हुआ था....
जैसे चम्बल की घाटी में युगों से दबंगी से पीड़ित स्त्री/ पुरुष दस्यु सरदारों की शरण में जाकर
आगे स्वयं दबंग बन, अन्य वंचकों के शोषक बन बैठना!.....
जैसे नक्सलियों का आंदोलन ध्यानाकर्षण से शुरु होकर समानांतर प्रशासक तक का हिंसक सफर ....
नक्सल और दस्यु समस्या का कुछ सीमा तक नियंत्रण केवल तब संभव हो सका है
जब संयुक्त प्रयास किये गये और इनके संरक्षकों को संरक्षण से वंचित किया गया!
मानवता के शत्रु बन चुके संगठनों को नेस्नाबूद करने शासन को यही करना होगा!
साथ ही, आज के आयसिस के तरीकों के पक्षधर दिखते सामाजिक संगठनों को,
मानवता के दुश्मन बनने से रोकना है, तो उन्हें जताया जाना होगा कि,
मानवता के मित्र, आपको मानवता की सीमा में रहते ही, साथ दे पायेंगे, या कि आपका साथ ले पायेंगे !
अन्यथा मानवता के मित्र अस्त्र-शस्त्र तो नहीं उठायेंगे किन्तु मानवता को नष्ट-भ्रष्ट भी नहीं होने देंगे!
आपसे केवल संबंध विच्छेद कर लेंगे, जैसा कि 31 जनवरी 1948 को,
रा. स्व. सं. के अनेक नियमित सदस्यों ने शाखाओं को सदा के लिए त्याग कर किया था!
#सत्यार्चन
...एवम् अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द...