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शुक्रवार, 24 जून 2011

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-4 ["वास्तविक स्वराज " ]

SwaSaSan Welcomes You...
  ["वास्तविक स्वराज " ]

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुशासन का सबसे काला पहलु है
 जिसके विरुद्ध कई जगह से आवाज उठाई जा रही है 
जिनमें से एक नक्सल भी हैं .
नक्सलवाद का प्रारंभ भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनांदोलन के रूप में हुआ 
किन्तु हमेशा की तरह राजनैतिक नेतृत्व के प्रवेश के साथ 
यह आन्दोलन पथभ्रमित हो गया .
नक्सलियों का उद्देश्य यदि भ्रष्टाचार का खात्मा और विकास के मार्ग पर बढ़ना होता
और वे बन्दूक की बजाय सत्याग्रह जैसी गोली चलाते  होते 
तो स्वसासन भी उनके साथ होता .
स्वसासन भी देश से हर उस बुराई को दूर करने संकल्पित है

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-3

SwaSaSan Welcomes You...
[वास्तविक आज़ादी की ओर ...]
    आज सोसायटी में बहस का सबसे अहम् मुद्दा भ्रष्टाचार ही रहता है. 
किन्तु हम केवल दुसरे की ओर ही अंगुली उठाते रहते हैं.
खुद अपने अन्दर झांकना आता ही नहीं  है हमें !
वे सभी, जो आम जनता समझे जाते हैं,
सर्वाधिक भ्रष्टाचार पीड़ित होते या समझे जाते हैं 
किन्तु जिम्मेदार भी वही आम जन हैं,
इस भ्रष्टाचार की  महामारी को बढ़ाने में !

बुधवार, 22 जून 2011

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-2

SwaSaSan Welcomes You...
जरा सोचें.... क्या कारण होगा कि
 हमारा देश आज़ादी के इतने सालों बाद भी...
 हमारा अपना सा नहीं हो सका !
प्रगति तो हुई किन्तु क्या पर्याप्त है इतनी प्रगति ?
क्यों हम वह नहीं पा सके जिसके हम अधिकारी थे ? 
कारण हमारी अंग्रेजी शासन काल से जारी
शासन को जनविरोधी समझने की मानसिकता 
और इस जनविरोधी प्रशासन के विरुद्ध
कुछ ना कर पाने की असमर्थता का स्वीकार !
शायद हमें स्वयं की सामर्थ्य का...
 ना तो ज्ञान है...
 ना ही अपनी सामर्थ्य पर विशवास !
इतिहास गवाह है कि हमारी आज़ादी
 और जापान की द्वतीय विश्वयुद्ध के बाद की  तबाही
के बाद उठ खड़े होने की कोशिश
लगभग एक ही समय कि घटनाएँ हैं
किन्तु आज जापान हमसे २००- ३०० बर्ष आगे पंहुच चूका है .
आखिर क्यों ?
 सबसे पहले तो अधिकांश लोग यह जानते ही नहीं कि....

 देश की प्रगति है क्या?
देश की प्रगति देखें या हमारी अपनी  ? 

   वास्तव में किसी  भी देश की प्रगति

उसके नागरिकों की प्रगति का ही दूसरा नाम है .
प्रत्येक देश रूपी इमारत की 

इकाई  ईंट उस देश का नागरिक ही होता है ,

देश (या भारत देश) का अलग से कोई अस्तित्व है ही नहीं. 

यदि देश केवल  भोगोलिक सीमाओं से घिरा क्षेत्र ही होता 

तो हर देश आज भी उतना ही अविकसित होता जितना हम आदिम युग में थे .

आज यदि  दुसरे देश हमसे आगे हैं 

तो उन देशों के नागरिक अपना और अपने देश का हित अलग अलग नहीं सोचते / समझते  .

आपसे जब  देश की प्रगति में सहयोग की बात  की जाती है 

तो आपसे केवल

अपने हिस्से की प्रगति करने 

और दुसरे की प्रगति में 

बाधक ना बनने की आशा की जाती है .

लेकिन आपको अपनी प्रगति में खुद अपनी मदद करने के बजाय  दुसरे 

की प्रगति में बाधक बनने में अधिक रूचि होती है

जिसके लिए आपको अपना ध्यान दो दिशाओं में देना होता है और दोनों ही 

काम ठीक तरह से नहीं हो पाते . 

मजे की बात तो यह भी  है कि

हमारे सामने हमारी संपत्ति को कोई नुकसान पंहुचाये  

तो हम लड़ने मरने को तैयार रहते हैं

किन्तु हमारे ही सामने उधमी बच्चे भी 

सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ कर रहे होते हैं तो हम चुप रहते हैं 

क्योंकि हमें मालूम ही नहीं होता कि 

छोटी छोटी चीजों को खरीदते समय हमारे द्वारा चुकाए गए टैक्स जैसी राशी 

यानी हमारी पूंजी  से ही ये सार्वजनिक सुविधाएं स्थापित हुई होती हैं.   
दूसरी ओर
जापानी अपनी राष्ट्रीयता की  भावना के लिए जाने जाते हैं ,
 इसीलिये भ्रष्टाचार में नकारात्मक मेरिट में हैं .

और हम ..?

हममें से अधिकांश इस तरह के टापिक पढ़ते हुए ,

अपनी ही  मातृ भूमि को गाली देने से भी गुरेज नहीं करते !!!

यदि इस टापिक का शीर्षक यह नहीं होता तो 'देश' जैसा  बिषय देख शायद १०%

 लोग भी इसे पढ़ना उचित नहीं समझते .
(क्षमा कीजिये 22 बर्ष  पूर्व के शब्द हैं ...
जब पहली बार लेख लिखा गया....
 तब हालात ऐसे ही थे....
 मेरी अपनी पत्रिका के प्रधान संपादक भी इसे छापने  के पक्ष में नहीं थे )
जहाँ तक भ्रष्टाचार का प्रश्न है तो नीचे लिखी लाइनें देखिये
( जो मेरे मनोबल को अभी तक  बनाए रखने के लिए,  मेरे सन्दर्भ में सटीक हैं

किन्तु हर कोई ऐसा ही दिखावा करता  हैं )
अनमोल(?) मानव
-----------
बिकाऊ है हर कोई यहाँ

बिकना ही नियति है सबकी

मेरा मोल लगाया गया कई बार ...

मैंने भी तय कर ली मेरी कीमत

तुम्हारा भी मोलभाव होता होगा ..

तुमने भी लगाये होंगे दाम अपने ....

पता नहीं कितना बिके अब तक तुम..

मुझे खरीदार मिला नहीं ...

मैंने पाल लिया है भ्रम  मन में...

कि मैं अलग हूँ  सबसे....

अनमोल हूँ मैं..... .

प्रार्थना है

हे मेरे ईश्वर !

मेरा मोल ना लग पाए कभी

बनाये रखना मुझे अनमोल !
-------------
मैं कोई मसीहा या अवतार या योगी या पंहुचा हुआ साधू-संत नहीं हूँ ,
मैं भी आप में से एक आम भारतीय ही हूँ !
बस मैंने मुझे स्वयं की नजरों में गिरने नहीं दिया है !
मैं अनारक्षित वर्ग से हूँ !

(मुझे विस्तार से जानने
 " क्या हक नहीं है मुझे उपदेश देने का "
  पढ़ सकते हैं )
वर्तमान आरक्षण व्यवस्था के रहते हुए भी 
यह मानने तैयार नहीं की रोजगार के अवसर अनुपलब्ध हैं !
मेरे पिता को, मुझे और मेरे बेटों को केवल अपनी योग्यता के दम पर 
[ किन्तु योग्यता के अनुरूप ही ]
एक से अधिक रोजगार के आमंत्रण उपलब्ध रहे हैं !
समस्या अपनी योग्यता से अधिक पाने के प्रयास में 
दुसरे के हिस्से को येनकेन प्रकारेण हड़पने के प्रयास से ही जन्मती है !
यदि आवश्यकता अधिक पाने की है तो 
अपनी योग्यता का विकास आवश्यक है !
अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता के साथ साथ 
अपने कर्तव्यों का ईमानदार निर्वाह भी आवश्यक है !
[अगले अंकों  में 'क्या है हमारे हाथ में ' ]

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-1

SwaSaSan Welcomes You...

"हमारा राज देश पर तो देश का दुनियां पर"-1


प्रथम भाग [परिचय] 

मैं यानी एक आम भारतीय , क्या चाहता हूँ और क्या करने जा रहा हूँ ? ? ?
जानने के लिए आपको पहले जानना होगा "स्वसासन" को ....
 .                       "स्वसासन"  आज़ादी के दीवानों  द्वारा आज़ादी के संग्राम के समय
देखे  गए   दिवा स्वप्न  को साकार करने हेतु संकल्पित एक मंच है . इस मंच का उद्देश्य
आगे चलकर  "स्वसासन् " (स्वप्न साकार संघ) का गठन करना भी है जो हम जैसे
सामान विचार धारा वालों का संगठन हो , जिसके माध्यम  से देश को एक स्वच्छ व
सशक्त नेतृत्व की ओर ले जाया  जा सके ...

शुक्रवार, 10 जून 2011

नेताजी और यमराज

(अतिथि रचनाकार संदीप कौशिक जी की प्रस्तुति )
नेताजी और यमराज


एक साथ कई घोटाले थे किए,
सो नेताजी ज्यादा दिन नहीं जिए |
उनका पाप का घड़ा जब यमदूत नहीं उठा पाये,
तो यमराज स्वयं चलकर उन्हें लेने आए |



यमराज बोले- चल तेरा समय हो गया पूरा,
उसने भी आँखें निकाल कर यमराज को घूरा |
जब यमराज ने आगे बोलना शुरू किया,
तो मौत देखकर नेताजी का मानो दम निकल गया |
यमराज बोले- दुष्ट ! अब तो धरती को छोड़ दे,
अपना पाप का घड़ा जाते-जाते तो फोड़ दे |

गुरुवार, 9 जून 2011

हम भी चुप गर तुम रहो चुप

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
हमारे देश का दुर्भाग्य है कि
सत्ताधीश और विपक्ष दोनों 
चोर चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर 
आपस में दुसरे की  चोरी पर चुप रहने के लिए 
अव्यक्त वचन बद्ध रहते हैं !
यह तथ्य , अभी अभी बाबा रामदेव के सहयोगी 
आचार्य बालकृष्ण के सम्बन्ध में 
सरकारी प्रवक्ता दिग्विजय के खुलासे से प्रमाणित हो गया है ! 
किसी भी विरोध को दबाने सरकार ,
विरोधी के आपराधिक प्रकरणों पर स्वतः ही पर्दा डाले रखकर ,
सौदेबाजी करती है , सौदा पटा तो ठीक नहीं तो जांच बैठा दी !
अब बाबा के सारे व्यापार व्यवसाय की भी सक्षम एजेंसियों से 
 जांच करवाई जा रही है , क्यों ?
बाबा के अनशन के बाद से ही सरकारी तंत्र को 
बाबा के व्यवसाय का बढ़ता आकार अनियमित लगने लगा ?
यदि कोई अनियमितता मिलती है तो सरकारी तंत्र की मिलीभगत 
और अक्षमता और भी अधिक उजागर हो जायेगी !
ना केवल बाबा के प्रकरण में वरन देश में संचालित 
सभी लायसेंस प्राप्त व्यवसायों की जांच कर देख ली जाए ,
कम से कम ८०% व्यवसाय प्राप्त किये गए लायसेंस की शर्तों 
के अनुपालन में अक्षम मिलेंगे !
किन्तु सरकारी तंत्र चुप रहेगा जब तक कि
ऐसे व्यवसाईयों से सरकारी तंत्र का हित 
किसी ना किसी रूप में सधता रहे !
फिर चाहे ऐसा हित साधन 
नियमित निरंतर प्राप्त हो रहे नकद के रूप में हो
[ जो अधिकारी स्तर के निचले माध्यम से ऊपरी स्तर तक बँटता है ] 
या किसी भी अन्य रूप में !
बाबा के अनशन के बाद शुरू हुई सरकारी जांचों ने 
सिद्ध कर दिया है कि 
सरकार विपक्ष से सौदेबाजी करती रहती है !
दोनों पक्ष एकदूसरे को भरपूर ब्लैकमेल करते रहते हैं !
सौदे एकदूसरे के काले कारनामों पर चुप्पी साधे रखने के होते हैं !
ऐसा लगता है कि देश को लूटने में रत 
सत्ताधारी राजनैतिक दल का आधार वाक्य हो 
"हम भी चुप गर तुम रहो चुप "
"मिलकर खाएं हमतुम गुपचुप " 

मंगलवार, 7 जून 2011

INVITATION !

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
Baba been beaten Anna been cheated !
We Indians being Exploited !
Then too keeping quite !
Is flooding water in our veins ?
If Blood ? should boil !!!
If Indian ? should Join !
http://www.swasasan.in/

रविवार, 5 जून 2011

ये ठीक नहीं हुआ माननीय

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....

 माननीय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी ,
जय हिंद !
बीते सप्ताह की तमाम घटनाओं के आप मूक दर्शक मात्र बने रहे ...
ये ठीक नहीं हुआ माननीय !
आपकी सरकार को, बाबा रामदेव २-३ दिन पहले ना बताते,
तो पता ही नहीं था की काले धन के साथ क्या किया जाना चाहिए !
ये ठीक नहीं हुआ माननीय !
भला हो बाबा रामदेव का की उन्होंने आपको २ दिन पहले 
काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने का फार्मूला आपको बताया 
और आपके योग्य मंत्रिमंडल ने मात्र २ दिन के विचार विमर्श के बाद 
इस निर्णय पर अमल हेतु समिति बनाने की तैयारी शुरू कर बाबा को सूचित कर दिया !
भला २ दिन पहले सुझाये आइडिया पर इतनी जल्दी अध्यादेश कैसे लाया जा सकता था !!!
बाकी के दो आइडिया भी कमाल के थे बाबा के !
वो भी २ दिन के भीतर मानने योग्य थे तभी तो आपकी सरकार 
भ्रष्ट को उम्रकैद तक देने तक और 
भारतीय भाषाओँ के विकास एवं प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु भी तैयार हो गई  !
काश ! बाबा जैसे आइडियाज के धनी कुछ मंत्री भी आपके मंत्रिमंडल में होते !
अथवा 

My Contribution to The Nation !!!

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
My Contribution to The Nation !!!
 Frieds ; Jai Hind !
Every one of us having multiple complains of unfair happenings in our nation 
  but
what are We in our own ?
Are we fair ?

or 

बुधवार, 18 मई 2011

AwakIND: Nourishing the roots of change, Making INDIA a better place to live in

AwakIND: Nourishing the roots of change, Making INDIA a better place to live in

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....

हमारा राष्ट्रगान कितना न्यारा कितना हमारा ???

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
हमारा राष्ट्रगान कितना न्यारा कितना हमारा  ???
 जय हिंद !
[मूलतः जागरण जंक्शन पर पूर्व प्रकाशित ]

अभी अभी गुजरे क्रिकेट विश्व कप के एक मैच की शुरुआत के समय मैं अपने कार्यालय में अपने कर्त्तव्य पर उपस्थित था .मैच से पहले टी व्ही पर राष्ट्रगान शुरू हो गया. मैं तुरंत अपनी कुर्सी से उठकर सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया . सहकर्मियों की धीमी धीमी हंसी उड़ाने वाली हंसी की आवाज मुझे सुनाई पड़ रही थी किन्तु मैं  मेरे इस तरह के कई कामों के लिए ऐसे हंसी सुनने और अनसुना करने का आदी हूँ .
इस बीच कार्यालय में आगंतुकों का आवागमन बदस्तूर जारी था . मुझसे सम्बंधित कार्य के लिए मेरे सामने आने वालों में से कुछेक ने काम के सम्बन्ध में प्रश्न भी किया किन्तु मेरे टी व्ही की ओर ध्यान को देख चुप हो गए . कुछ साथियों और आगंतुकों ने ना तो मेरी ओर  ना ही टी व्ही से आ रही आवाज की ओर ध्यान दिया.उन्हें पता ही नहीं चला क्या कुछ घटा वहां पर ! वहां उस समय उपस्थित ३०-३२ लोंगों में से किसी और को मेरा अनुसरण करते मैंने नहीं पाया !

रविवार, 1 मई 2011

क्यों जलती है कलम

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
swasasan team always welcomes your feedback. please do.
[ कहीं भी कुछ  भी पसंद आये 
कृपया प्रमोट कीजिये.........  ]
यदि आपके सीने में भी 
एक धड़कता हुआ दिल है
तो जीवन में कभी ना कभी
आपने भी सीने में जलन 
और दिल में लहू की जगह

स्वसासन { स्वप्न साकार संकल्प }

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
स्वसासन { स्वप्न साकार संकल्प }    
SwaSaSan अकेला एक शब्द नहीं वरन तीन शब्दों के मेल से बना है स्व स्वप्न से , सा साकार से और सं संकल्प से मिलकर बना है स्वसासन....
पृथक पृथक  परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक शब्द लिया गया है . 
स्वप्न
वह दिवा स्वप्न है जिसे आजाद भारत रचने वाला था जिसके हम भारतीय अधिकारी भी थे. उस स्वप्न की तस्वीर का फ्रेम आज़ादी के रूप में हमें देकर शहीद होने वालों के स्वप्नों की तस्वीर के निकट पंहुचने ही नहीं वरन उस स्वप्न के साकार  को संकल्प बद्ध  मंच है स्वसासन...

रविवार, 24 अप्रैल 2011

चर्चित ब्लॉगर मदद मंच { हिंदी }

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है....


JAAGO MRUT BHARTEEYA JAAGO !!!!

चर्चित ब्लॉगर मदद मंच { हिंदी }

आप और मैं, हम सभी हिंदी प्रेमी भी हैं और हिंदी लेखक भी,
जाज जैसे ब्लॉगर मंच भी उपलब्ध हैं !
फिर किसे इंकार होगा कि
अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है – ब्लोगिंग !
कुछ समस्याएं जरुर आड़े आती है हिंदी के लेखकों को
जैसे अधिकांश का अंग्रेजी भाषा ज्ञान सीमित होना ,
तकनीकी ज्ञान / कौशल की कमी .
उपरोक्त दो समस्याएं अच्छे भले लेखक और पाठक दोनों की परेशानी का कारन बनती हैं ,
किन्तु हमारे ही कुछ ब्लॉगर भाई – बहिन पूर्ण दक्ष भी हैं !


इन्हीं कि मदद से समाधान के उद्देश्य से आज
‘ ब्लॉगर मदद मंच { हिंदी } ‘
आप सभी ब्लॉग लेखकों को समर्पित कर रहा हूँ !
वे जिन्हें समस्या है प्रतिक्रिया के रूप में लिखें !
साथ ही

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

अन्नाजी; जय हिंद !!!

 आश्चर्य है अन्नाजी सरकार की एक और चाल में फंसकर खुश हो रहे हैं !
वह भी केजरीवाल जी और किरणजी जैसे सहयोगियों के होते हुए !
विगत ४ अप्रैल को भी अन्नाजी के अनशन समापन वाले दिन मैंने नीचे प्रदर्शित लेख लिखा था जो अक्षरसः सामने आ रहा है उसी तरह आज फिर लिख रहा हूँ ! अन्नाजी खुश होने लायक सरकार कुछ नहीं करने जा रही है वरन मेरे पिछले लेख के अनुसार ही सरकार की अगली चाल है यह जिसपर आप वेवजह प्रसन्न हो रहे हैं !
सरकार ने सभी राजनैतिक दलों और राज्यों के मुख्मंत्रियों की बिल पर रायशुमारी की मंशा एक सोची समझी साजिश के तहत जाहिर की है !
भारतीय राजनैतिक इतिहास गवाह है ना किसी भी विपक्ष ने कभी  सात्ताधारी दल के [ सरकारी ] और ना ही सरकार ने विपक्ष के [गैरसरकारी ] किसी भी उपयोगी से उपयोगी बिल को, बिना अनावश्यक बहस या बिना मनमाने गैरजरूरी संशोधनों का  दबाव बनाए, कभी पारित करवाने में रूचि दिखाई तो आज इतने महत्वपूर्ण बिल जिसपर कई राजनीतिज्ञों का भविष्य ही दांव पर लगने वाला हो को ऐसे ही छोड़ देंगे !
पिछले ४२ सालों से भी इन्हीं राजनैतिक दलों के झूठे / सच्चे विरोध / संशोधन प्रस्तावों के चलते लोकपाल बिल अटका रहा है तो अभी भी कम से कम ७-८ साल अटकाने का प्रबंध तो सरकार ने कर ही लिया है !
और भी मजे की बात यह कि मुद्दे को उठाने वाले अग्रणी नेता अन्नाजी की ख़ुशी ख़ुशी हामी भी भरवा ली !
अन्नाजी काश मुझे भी आपके सलाहकार मंडल में शामिल किया होता !
मैं आप जैसा नामी गिरामी नेता तो नहीं किन्तु विगत २१ सालों से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यरत हूँ ,और  एक एक दुह राजनैतिक चाल को बारीकी से देखते देखते अगले २१ सालों की इनकी रणनीती आज ही देख पाने में सक्षम हो गया हूँ ! 

[ विगत ४ अप्रैल ११ को नीचे दी गई लिंक प्रस्तुत की थी ] 
यह जीत नहीं भुलावा  है -अन्ना जी ,केजरीवालजी,किरण जी !
अन्नाजी के अनशन और केजरीवाल जी ,किरण जी के प्रयासों से सरकार झुकी हुई प्रतीत हो रही है किन्तु यह पूरी तरह सच नहीं है .
यदि माननीय मनमोहन जी जैसे नेताओं के हाथ में होता तो लोकपाल बिल ४२ वर्षों तक इन्तजार ना कर रहा होता .
कांग्रेस में ही नहीं देश के राजनैतिक इतिहास में मनमोहन जी , अटल जी , राजीव जी ,आडवानी जी जैसे नेता गिने चुने ही हुए हैं. सब के सब सत्ता के भागीदारों से सहयोग के बदले उनके अनैतिक की अनदेखी करने विवश!

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

एक तल्ख़ कहानी -आ अब लौट चलें.....

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....

वह दिखने मैं ठीकठाक ही था
लेकिन यह उसकी अपनी सोच थी
सच यह था की जितना वह दिखने में आकर्षक था
उससे कई गुना व्यवहार में
हुनर मंद इतना की किसी भी मॉडल की कार की इमरजेंसी सर्विस में पूरे शहर में प्रसिद्द
शहर के नंबर एक वर्कशाप का हैड मैकेनिक
उसके आकर्षक व्यक्तित्व से मालिक से अधिक उसकी पूछ परख थी
फिर चाहे कार मालिक महिला हो या पुरुष
सबका चहेता था वो दोस्ताना था सबसे उसका
एक दिन उसकी एक महिला दोस्त ने उसे

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

लघु कथा-१ सपनों का घर

स्वसासन आपकी प्रतिक्रियाओं के स्वागत को प्रतीक्षित है ....
सपनों का घर

एक सामाज सेवी संस्था के बुलाबे पर दिल्ली जा रहा था.

शाम के ५ बज रहे थे .
शयनयान श्रेणी के डिब्बे में सहयात्री अपने आप में खोये शून्य से बैठे थे .
मेरे सामने खिड़की से लगकर उनींदी सी एक बृद्धा बैठी थी और
मेरे बाजु में खिड़की पर उसके बृद्ध पति किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे.
अचानक बृद्ध ने पत्रिका को बंद कर बगल में रख एक लम्बी सांस खीची और
चश्मा उतारकर साफ़ किया फिरसे पहना और खिड़की के बाहर झाँकने लगे .
थोड़ी देर बाद खिड़की के बाहर सूखे खेतों की तरफ देखते हुए बृद्ध ने उत्साह पूर्वक
बृद्धा की और देखकर लगभग चिल्लाने वाले अंदाज में कहा

"देखो वो वहां जो मकान दिख रहा है ना ....."

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

भुला बैठा तेरी सूरत

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भुला बैठा तेरी सूरत
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बड़ा रोमांचक क्षण था जब ३० बर्षों के लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर उससे सामना हो रहा था .
मेरे पास कोई प्रश्न नहीं था .
बस उसकी खुशहाली जानना थी -उसे देखना था .
सो उसकी कोठी के मेन गेट को देखकर ही उसके वैभव का अंदाज हो गया था .
बची खुची कसर ड्राइंग रूम की साजसज्जा देख पूरी हो गई थी .

हलाकि वो खुद एक प्रोफेशनल अर्चिटेक्ट थी सो थोड़ी बहुत सम्पन्नता तो संभावित थी ही ,
किन्तु उसे इतना संपन्न पाकर में ख़ुशी से ज्यादह शर्मिंदगी महसूस कर रहा था .
मेरा उसका कोई मेल ना तो ३० साल पहले था ना आज.
हंसी आ रही थी अपने एकतरफा प्रेम पर

प्रेम की गागर से प्रेम-सागर तक

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श्रीमद्भागवद्गीता में जो कर्म फल की इच्छा बिना कर्म के लिए कहा गया है
वही प्रेम के बिषय में भी सार्थक है .
प्रेम केवल देने के लिए होता है पाने की इच्छा किये बिना !
जब ऐसा प्रेम दिया जाना संभव हो जाता है
तो
प्रेमसलिला का उद्गम होता है .
फिर प्रेम का सागर भी बनता है
.जब प्रेम सागर का रूप ले लेता है तो प्रेम सागर में

जीवन - यात्रा

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जीवन - यात्रा
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जीवन
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एक अनिवार्य यात्रा
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चलना ही नियति सबकी
.
पथ चुनाव
.
सीमित विकल्प
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प्रगत पथ पर्वतीय

अधूरा मिलन

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अधूरा  मिलन
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रात अनायास तुम
मेरे पहलू में आ गईं
.
मेरे प्रथम स्पर्श से
नववधू सी लजा गईं
.
अधखुली पलकों से
निहारती मेरी ओर
.
कंपकपाते अधरों पर
मेरे चुम्बन को प्रतीक्षित

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